कहानी: ट्रेन के सफर का पहला अनुभव – Train Wala Kahani

Train Wala Kahani: आज के समय मे ट्रेन का सफर करना आम बात हो गई है। गावं के लोग हो या शहर के सभी लोगो ने ट्रेन का सफर किया है। और ट्रेन के पहले अनुभव को दोस्तो व परिवार के साथ साझा किया। आज इस लेख मे हम दिल्ली से झारखण्ड जाने वाली ट्रेन के सफर की कहानी पढेंगे।

यह ट्रेन भारत के तीन राज्यों से होकर गुजरती है। ट्रेन उत्तर प्रदेश के आनंद बिहार से होकर कानपूर, प्रयागराज, मिर्जापुर, पंडित दीनदयाल उपाध्याय होते हुये, बिहार के प्रमुख स्थानो पर रुकते हुये झारखण्ड तक जाती है। आज हम इसी ट्रेन की कहानी पढेंगे।

Train Wala Kahani

ट्रेन की कहानी – Train ki Kahani

हमारी संस्कृति तो ट्रेनों के डिब्बो में भी दिखती है, हम बात कर रहे हैं, भारतीय संस्कृति की, इस कहानी की शुरुआत होती है एक झारखंडा स्वर्ण जयंती ट्रेन से, जो आनंद बिहार से चलकर हमारे निवास स्थान कुम्भ नगरी से होते हुए भारत की कर्णधार राज्य बिहार और झारखंडा तक के कुछ प्रमुख शहरों में जाती है। ये कहानी लिखने का विचार तब आया जब एक स्त्री के गुण व अवगुण से परिचित हुआ।।

मेरे सीट के बगल एक स्त्री थी, जो मेरे मम्मी समान थी, और मेरी मम्मी की तरह सुंदर दिख भी रही थीं, ये सुंदरता तब खत्म हो गई जब उन्होंने मास्क उतारा, उनके बाहर निकले दांत मुझे चुभने लगे, मैंने सोचा कास कोरोना यही पैदा हो जाये ताकि माता जी मास्क लगा के अपनी सुंदरता कायम रख सके। (Train Wala Kahani)

हर स्त्री की तरह उनके पास भी गज़ब की ताकत थी और वो थी बे वज़ह बकबक करना, और कोई थोड़ा बोल दे तो पुरी कहानी बता देना, उनके बताए कहानी के अनुसार वो दिल्ली की महान शख्सों में से एक थी, उनके हर शब्द व विचार, यूनिवर्सिटी में रहने वाले लेक्चरर से कम नही थे। हालांकि वो मेरे साथ ट्रेन की सबसे कम कीमत वाली डिब्बे में सफर कर रही थी, लेकिन उनकी कहानी सुनने के बाद ऐसा प्रतीत हुआ की, जरूर कोई मजबूरी होगी, वर्ना ये हर सफर पर्सनल प्लेन से करती होंगी।

हम सब को पता है की भारत के लोग कही भी जाये घर से ढेर सा खाना, चना, मूंगफली, चुरा, इत्यादि, ले जाते है। खाने के लिए इतनी सामग्री ले जाते है की पूरी ट्रेन खिला सके,, लेकिन मैं उनमें से नही हु, मैं अपने सफर के दौरान बस पानी की बोतल साथ रखता हूं, या वो भी नही,। (Train Wala Kahani)

मैं बात कर रहा उस स्त्री की जो मास्क लगाने पर मेरे माँ की तरह दिख रही थी, इसलिए मैं ना चाहते हुए भी उसे देख लेता, हालांकि मैं अपने गहरे रिश्तों के अलावा किसी को नही देखता, लेकिन उस औरत में मेरी माँ की शुरत थी इसलिए मेरी भावनाएं माँ को देखने के लिये उत्साहित हो रही थी। अब तक रात को 11 बज चुके थे, और कुछ लोग भोजन करने लगे, वो स्त्री भी कर रही थीं, शायद उनके पास भोजन अधिक था, इसलिए उन्होंने अगल बगल से लोगो से पूछा, भोजन कर लीजिए,, एक बार तो सभी ने मना कर दिया, जैसे – घर आये रिश्तेदार खाने के लिए मना करते है और खाने लगते है तो, दुबारा आटा गूँथना पड़ जाता है। वैसे ही भोजन तो सभी ने मना किया लेकिन सभी ने खाया भी ।

अब तक उनकी मित्रता एक पुरूष से हो गई, जो बिना टिकट के नीचे जमीन पर बैठा था, वह दिखने में अधिक सुंदर तो नही था, लेकिन उतना गंदा भी नहीं था,, बह स्त्री के पास बैठने के कारण उनकी बकबक झेल रहा था, शायद उसे घर पहुचने के बाद, जरूर कान की दवा लेना होगा, हालाकि मैं भी पास ही था, लेकिन लीड लगाया था, जिसके कारण मेरे कानों में सिर्फ गाने की आवाज सुनाई दे रही थी। और मैं कहानी लिखने में व्यस्त था।

मेरे दाहिने तरफ एक महिला बैठी थी जो मेरी बहन की दोस्त नंदू जिसे मैं अपनी सगी बहन मानता हु उनके जैसे दिख रही थी। मैं प्रकृति प्रेमी हूं, जिसके कारण मैं बिहार के लोगो को अधिक पसंद करता हूं, भाग्य वश, मेरे बगल बैठी महिला बिहार की थी, उन्होंने जब भोजन निकाला तो, मुझसे पूछा बेटा खाना खाओगे”” मुझे थोड़ी भोजपुरी आती थी, मैंने भी प्यार बोल दिया, ” हम खाना खइले बानी”, मेरी भाषा सुनते ही दादी ने पूछ लिया कहा घर है बेटा, मैं धीमे से बोला इलाहाबाद,,ताकि वो इलाहाबाद को बिहार का जिला समझे।।

अब तक सुबह के 4 बज गये थे, और ट्रेन अपने समयानुसार प्रयागराज पहुंच गई फिर मैंने सभी को अलविदा कहाँ और उनकी कल्पना करते हुये घर पहुच गया। (Train Wala Kahani)

Note- यह कहानी सच्ची घटना व कल्पना पर आधारित है। इस कहानी के अधिकतर अनुभव वास्तविक है, जिसका मैंने स्वयं अनुभव किया है। यह कहानी आपको कैसी लगी, कमेंट मे जरुर बताये। साथ ही अपनी कहानी शेयर करने लिये क्लिक करे (Train Wala Kahani)

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