पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पूरा दोहा और अर्थ । pothi padh padh jag mua doha
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय” यह दोहा संत कबीर द्वारा लिखा गया है. संत कबीर दास के दोहे समाज को एक नई राह दिखाते है इनके द्वारा रचित दोहे समाज मे विद्यमान कुप्रथा, अराजकता, सामाजिक विषाद आदि को खत्म कर, एक सभ्य समाज के निर्माण मे अहम भूमिका निभाते है साथ ही संत कबीर द्वारा रचित दोहे अधिकांश समाज में विद्यमान सामाजिक, धार्मिक, और मानसिक कुप्रथाओ पर चोट करते है एवं सकारात्मक बदलावों का मार्गदर्शन करते है।
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पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ (pothi padh padh jag mua)
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय ।
कबीर दास
ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।।
pothi padh padh jag mua Doha ka arth
अर्थ– कबीर दास जी कहते है कि बड़ी-बड़ी पुस्तकों या किताबों को पढ़कर, संसार से अनगिनत लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए हैं, पर सभी विद्वान नहीं बन सके। कबीर दास का मानना है कि यदि कोई प्यार का केवल ढाई अक्षर के अर्थ को अच्छे से समझ लेता है तो वही सच्चा ज्ञानी होता है।
प्रसिध्द दोहो का संग्रह
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ” दोहा का अर्थ विस्तार से – pothi padh padh jag mua arth
पुस्तकों को पढ़ने व संग्रहित करने मे न जाने कितनी रातें बिताई होंगी, कितनी चाय की प्यालियाँ खाली की होंगी, और कितने ही पन्ने पलटे होंगे, लेकिन क्या इतने पुस्तको को पढ़ने के बावजूद वे सब व्यक्ति विद्वान बन पाए हैं? शायद नहीं।
अत: कबीर दास जी कहते है कि ज्ञान और विद्या की सच्ची पहचान प्यार के उस ढाई अक्षर में है, जिसे आज तक कोई पढ़ नही पाया है वे मानते हैं कि यदि कोई इस प्यार के मार्ग को समझता है, तो वह वास्तविक ज्ञान के पात्र बन जाता है। प्यार का वास्तविक अर्थ समझने के पश्चात ही आप विद्वान बन सकते है। क्योकि प्रेम या प्यार न केवल एक भावना होती है, बल्कि एक गहरे रिश्ते का प्रतीक भी होता है।
कबीर दास के दोहो का समाज पर प्रभाव
कबीर दास के दोहो ने समाज में अकल्पनीय परिवर्तन किये है, जब हम कबीर दास के दोहे पढ़ते है तो हमे आभास होता है कि समाज में सामाजिक, धार्मिक, और मानसिक प्रकार के बदलाव करने मे संत कबीर, रहीमदास, तुलसीदास अन्य कवियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। क्योकि दोहे समाज के विभिन्न पहलुओं पर सवाल उठाते है और उत्तर भी देते है, जिसके परिणाम स्वरुप हम एक कुशल समाज की स्थापना कर पाये है। दोहो ने हमारे समाज को निम्नलिखित रुपो मे परिवर्तन किया है। जैसे-
समाज मे विराजमान जातिवाद के खिलाफ विचारधारा: कबीर दास, रहीम दास व अन्य कवियो ने अपने दोहे मे जातिवाद की मानसिकता के खिलाफ आवाज उठाई है अर्थात अपने दोहावली मे उसका विरोध किया है। कवियों ने अपने दोहा व कविताओ मे जातिवाद के नकारात्मक प्रभावों को बताया और सभी मनुष्यों को जन्म के आधार पर भेदभाव करने की बजाय उनके कार्यों और चरित्र के आधार पर उनका मूल्यांकन करने की आवश्यकता को बताया है. यही नही बल्कि ऐसे कई सामाजिक बुराईया है जिनका जिक्र दोहा मे किया गया है जैसे कि-
जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान।
कबीर दास
मोल करो तलवार का , पड़ा रहन दो म्यान।
धार्मिक विचारधारा: कबीर दास के दोहे ने धार्मिक तात्त्वों की महत्वपूर्णता पायी जाती है। उन्होंने अन्याय, ईश्वर का अस्तित्व और मानव जीवन के मूल्यों की चर्चा अपने दोहे मे की है, जिन्हें हम एक सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देख सकते है। साथ ही कबीर दास के दोहे व्यक्तिगत स्वतंत्रता को भी प्रोत्साहित करते है। उन्होंने व्यक्ति को अपने कर्मों के द्वारा प्राप्त होने वाले फलों के लिए जिम्मेदार ठहराया है और उन्हें अपने जीवन की दिशा तय करने की स्वतंत्रता दी है।
सामाजिक समस्याओं के खिलाफ: कबीर दास के दोहे से साफ नजर आता है कि वे सामाजिक कुरुतियो या बुराइयो के खिलाफ थे। उन्होंने गरीबी, असहमति, जातिवाद और अन्याय के खिलाफ दोहे लिखे और समाज को सुधारने मे एक अहम भूमिका निभाई- जैसे कि-
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर!
ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर
चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए
वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर
आशा, तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर
निष्कर्ष– कबीर दास रचित यह दोहा संग्रह आपको कैसा लगा, कमेंट मे अपना विचार अवश्य सांझा करें, साथ ही अगर आपको कबीर दास, रहीम दास या अंत किसी कवि के दोहा का अर्थ जानना है तो कमेंट मे उनका नाम अवश्य बताये।