तुलसीदास के 20 प्रसिध्द दोहे – Tulsidas ke Dohe Hindi

Tulsidas ke Dohe: दोहा हिन्दी साहित्य की महत्वपूर्ण रचना है। जो सामान्यतः दो पंक्तियों में होती है। इसके माध्यम से कवि विभिन्न विषयों पर सटीक, सरल और गहराई से अपने विचारो को व्यक्त करते हैं। ताकि इन विचारो का पालन कर व्यक्ति व समाज अपने जीवन को आनंदित बना सके।

आपको बता दू भारतीय संस्कृति में काव्य एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जहाँ महान कवियों जैसे- कबीरदास, रहीमदास और तुलसीदास जी की प्रमुख रचनायें समाज को दर्पण दिखा रही है।

Tulsidas ke Dohe Hindi

तुलसीदास जी के दोहे हमें ज्ञान, भक्ति, सम्प्रेम और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर विचार करने के लिए प्रेरित करती हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम तुलसीदास जी के प्रमुख दोहों के बारे में गहराई से जानेंगे और उनके संदेश की व्याख्या करेंगे।

तुलसीदास के प्रसिध्द दोहे – Tulsidas ke Dohe

“तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक॥”

तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान
भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण

Tulsidas ke Dohe Hindi

काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान
तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान

Tulsidas ke Dohe Hindi

“तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग।
सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग॥”

तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक ॥

Tulsidas ke Dohe Hindi

काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान।
तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान ॥

Tulsidas ke Dohe Hindi

तुलसीदास के दोहे अर्थ सहित – tulsidas ke dohe with meaning in hindi

Tulsidas ke Dohe

तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ और।
बसीकरण इक मंत्र हैं परिहरु बचन कठोर.

Tulsidas ke Dohe

अर्थ- इस दोहे के माध्यम से तुलसीदास जी कहते हैं कि मीठी वाणी से चारो ओर सुख फैलाता हैं, यह किसी को भी वश में करने का एक मंत्र हैं इसलिए हमे कठोर वचन छोड़कर मीठी वाणी बोलनी चाहिये।

 तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान|
भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण||

अर्थ- गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं, समय बड़ा बलवान होता है, वो समय ही है जो व्यक्ति को छोटा या बड़ा बनाता है| जैसे एक बार जब महान धनुर्धर अर्जुन का समय ख़राब हुआ तो वह भीलों के हमले से गोपियों की रक्षा नहीं कर पाए|

 तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए|
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए||

Tulsidas ke Dohe Hindi

अर्थ- गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं, ईश्वर पर भरोसा कीजिये और बिना किसी डर के चैन की नींद सो जाइये| क्योकि कोई अनहोनी नहीं होने वाली और यदि कुछ अनहोनी होना ही है तो वो हो के रहेगा इसलिए व्यर्थ की चिंता छोड़ आनंदपूर्ण जीवन व्यापन करे।

 तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग|
सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग||

Tulsidas ke Dohe

अर्थ- गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं, इस संसार में विभिन्न प्रकार के लोग रहते हैं, अर्थात इस संसार मे हर स्वभाव और व्यवहार के लोग रहते हैं, आप सभी से अच्छे से मिलिए और उनसे बात करिए| जिस प्रकार नाव नदी से मित्रता कर आसानी से उसे पार कर लेती है वैसे ही आप भी अपने अच्छे व्यवहार से सबके साथ मिलजुल कर रहे।

प्रसिध्द नीति के दोहे
रहीमदास जी का प्रसिध्द दोहा
ईश्वर मे विश्वास पर दोहा
Doha in Hindi

“दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान
तुलसी दया न छोडिये, जब तक घट में प्राण॥”

अर्थ – इस दोहे में तुलसीदास जी ने मानवीय गुणों के महत्वपूर्ण आदर्शों को प्रस्तुत किया है। दोहे में कहा गया है, कि “दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान। तुलसी दया न छोडिये, जब तक घट में प्राण”। यहां दया और अभिमान के द्वारा मनुष्य के आचरण की महत्वपूर्णता पर बल दिया गया है।

दोहे का पहला अंश कहता है कि दया धर्म का मूल है। दया यानी करुणा और दयालुता से परिपूर्ण होना है। यह हमें दूसरों के दुःखों और संकटों के प्रति सहानुभूति और मदद करने की प्रेरणा देता है। धर्म की आधारभूत सिद्धांतों में दया और करुणा का महत्व बहुत उच्च माना जाता है। यह दोहा हमें सिखाता है कि हमें दया के गुणों को अपने आचरण में स्थापित करना चाहिए। पहली पंक्ति का दूसरा अंश कहता है कि पाप मूल अभिमान है। अभिमान यानी अहंकार जो पाप के समान होता है।

दोहे के दूसरे अंश को पूरा करते हुए कहा गया है, “तुलसी दया न छोडिये, जब तक घट में प्राण”। अर्थात तुलसीदास जी कहते है कि हमें दया को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। जब तक हमारे शरीर में प्राण हैं, हमें सदैव दयालु रहना चाहिए।

 करम प्रधान विस्व करि राखा
जो जस करई सो तस फलु चाखा

Tulsidas ke Dohe Hindi

अर्थ- गोस्वामी तुलसीदास जी इस दोहे के माध्यम से यह बताना चाहते है कि ईश्वर ने इस संसार में कर्म को महत्ता दी है अर्थात जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल भी भोगना पड़ेगा।

तुलसीदास जी का प्रसिध्द दोहा

दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान | तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण॥

तुलसीदास की प्रथम रचना क्या थी?

तुलसीदास की प्रथम रचना वैराग्य संदीपनी थी

तुलसीदास की अंतिम रचना क्या थी?

तुलसीदास की अंतिम रचना कवितावली को माना जाता है।

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