दोहा: रहिमन धागा प्रेम का, मत तोडो चटकाय (अर्थ) – Rahiman Dhaga Prem ka mat todo Chatkay

दोहा: रहिमन धागा प्रेम का, मत तोडो चटकाय। Rahiman Dhaga Prem ka mat todo Chatkay

रहीम दास जी भारत के प्रसिध्द कवियों मे से एक है। इन्होने समाज सुधारने हेतु कई प्रसिध्द लेख व दोहे प्रस्तुत किये है, जिनमे से रहिमन धागा प्रेम का, मत तोडो चटकाय, टूटे से फिर ना जुरै ,जुरै गांठ पड़ जाय, एक है। इन्होने भरतीय समाज मे ऐसे कई दोहे प्रस्तुत किये, जिनके अवलोकन से समाज को सुधारा जा सके।

Rahiman Dhaga Prem ka mat todo Chatkay
Rahiman Dhaga Prem ka mat todo Chatkay

आइये रहीम दास जी के प्रसिध्द दोहे रहिमन धागा प्रेम का (rahiman dhaga prem ka doha meaning) का अर्थ व व्याख्या समझते है।

रहिमन धागा प्रेम का दोहा – Rahiman Dhaga Prem ka Doha

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोडो चटकाय, टूटे से फिर ना जुरै,,जुरै गांठ पड़ जाय ।

Rahiman dhaga prem ka meaning in hindi

व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में कवि रहीम ने प्रेम की तुलना धागे से की है उसने कहा है कि धागे की भांति प्रेम सम्बन्ध भी अत्यंत कोमल एवं नाजुक होता है।इसे झटके से तोड़ देना अच्छा नहीं होता।जिस प्रकार धागा टूट जाने पर जुड़ नहीं पाता, और यदि जोड़ा जाय तो उसमें गांठ बन जाती है। ठीक इसी प्रकार प्रेम भी टूटने पर जुड़ते नहीं, और यदि जुड़ भी जाएं तो व्यक्तियों के मन में गांठ बनी रह जाती है।

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रहीम दास का परिचय

कवि रहीम दास मध्यकालीन कवि थे। वे विद्वान और कला के धनी व्यक्ति थे, रहीम दास जी सभी धर्मों और सम्प्रदायों को मानने वाले थे, वे प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे, एक मुसलमान होते हुए भी उन्होंने अपनी रचनाओं में हिन्दू देवी देवताओं पर्वों, धार्मिक मान्यताओं का उल्लेख किया है ‌। उन्होंने अपना सारा जीवन हिन्दू परम्पराओं पर बिताए। आईए अनन्त जीवन के माध्यम से पढ़ते हैं उनके महत्वपूर्ण दोहे

यह न रहीम सराहिए, लेन देन की प्रीती।
प्राणन बाजी राखिए,हार होय कै जीत।।

व्याख्य- प्रस्तुत दोहे में कविवर रहीम दास जी ने कहा है कि जिस प्रेम में लेन देन, अर्थात देने के बदले में लेने की भावना हो,रहीम ऐसे प्रेम की सराहना नहीं करते। असली प्रेम तो वह है, जिसमें प्राणों की बाज़ी लगा दी जाती है|

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