कबीर दास के 10 प्रसिध्द दोहे, आपकी सोच बदल देंगी | famous kabir das dohe in hindi

famous kabir das dohe: कबीर दास जी का जन्म 15वी सदी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में हुआ था। इनके माता का नाम नीरू एवं पिता का नाम नीमा तथा गुरु स्वामी रामानंद जी थे कबीर दास जी को कबीर साहब के नाम से भी जाना जाता है।

कबीर दास के 10 प्रसिध्द दोहे, आपकी सोच बदल देंगी | famous kabir das dohe in hindi
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कबीर दास जी भारत के महान कवि और संत के रुप में जाने जाते है। कबीर दास जी ने अधिकतर दोहो ने समाज को सुधारने व समाज से रुढिबध्द धारणायों को समाप्त करने मे अहम भूमिका निभाई है। जिससे समाज एक व्यवस्थित जीवन का निर्वहन करने मे सक्षम हो पाया है। आइये कबीर दास जी के प्रसिध्द दोहो (famous kabir das dohe) को पढते है।

प्रसिध्द कबीर साहब के दोहे – famous kabir das dohe

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

अर्थ- कबीर दास जी कहते है कि सज्जन व्यक्ति या शिक्षक से उनकी जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। क्योकी तलवार का मूल्य\कीमत होता है न कि उसकी मयान का।

  बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर |
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ||

अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि खजूर का पेड़ बेशक बहुत बड़ा होता है लेकिन ना तो वो किसी को छाया देता है और फल भी बहुत दूर(ऊँचाई ) पे लगता है। इसी तरह अगर आप किसी का भला नहीं कर पा रहे तो ऐसे बड़े होने से भी कोई फायदा नहीं है।

 ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार |
हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार ||

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 साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये |
मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए ||

अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि हे प्रभु मुझे ज्यादा धन और संपत्ति नहीं चाहिए, मुझे केवल इतना चाहिए जिसमें मेरा परिवार व घर आये व्यक्ति को जलपान करा सकू।

 आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर |
इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर ||

अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। चाहे वो कोई राजा हो या फ़क़ीर, जब व्यक्ति का अंत समय आता है तो यमदूत सबको जंजीर में बांध कर ले जायेंगे

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 ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय |
सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ||

अर्थ- कबीरदास जी ने इस दोहे मे समाज से जातिय भेदभाव को मिटाने का प्रयास किया है। वो कहते है की ऊँचे कुल में जन्म तो ले लिया लेकिन अगर कर्म ऊँचे नहीं है तो ये सोने के लोटे में जहर भरे के समान है। जिसकी चारों ओर निंदा ही होती है।

 कागा का को धन हरे, कोयल का को देय |
मीठे वचन सुना के, जग अपना कर लेय ||

अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि कौआ किसी का धन नहीं चुराता और कोयल किसी को धन नहीं देती लेकिन सबको कौवे से नफरत व कोयल से प्यार होता है। क्योकी कोयल मीठी बोली से सबके मन को हर लेती है।

 धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥

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 कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये

अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे उस समय सारी दुनिया खुश थी और हम रो रहे थे। इसलिये जीवन में कुछ ऐसा कर्म करो कि जब हमारी मृत्यू हो तो दुनियां रोये , दुनिया तुम्हे याद करे।

 माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥

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