झांसी की रानी: 2 प्रसिध्द कवितायें | Rani Lakshmi bai poem in Hindi

Rani Lakshmi bai poem in Hindi | rani Laxmi bai poem in Hindi

झांसी के रानी क जन्म 19 नवम्बर 1828 ई० मे उत्तर प्रदेश के आध्यात्मिक शहर वाराणसी मे हुआ था। इनके पिता का नाम मोरपंत व माता का नाम भागीरथी था। इन्होने मात्र 29 वर्ष की आयु मे अग्रेजो के साथ युध्द किया और उन्हे हराया।

आज इस लेख मे हम ऐसी विरांगना की कविता पढेंगे, जिन्होने मात्र 29 वर्ष की आयु अग्रेजो से मुकाबला कर उन्हे धूल चटा दिया, और अपने झांसी सम्राज्य की रक्षा की, 5+ झांसी की रानी प्रसिध्द कवितायें | Rani Lakshmi bai poem in Hindi

Rani Lakshmi bai poem in Hindi
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झांसी वाली रानी – rani Laxmi bai poem in Hindi

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

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मणिकर्णिका झांसी की रानी कविता

अंग्रेजो क़ो याद दिला दीं, ज़िसने उनक़ी नानी।
मर्दांनी, हिदुस्तानी थी, वो झांसी क़ी रानी।।

अट्ठारह सौ अट्ठाईस मे, उन्नींस नवम्बर दिन था।
वाराणसीं हुईं वारे न्यारें,हर सपना मुमक़िन था।।

नन्ही कोपल आज़ ख़िली थी, लिख़ने नई कहानी…
“मोरोपंत” घर ब़ेटी ज़न्मी, मात “भगीरथी ब़ाई”।

“मणिकर्णिका” नामक़रण, “मनु” लाड क़हलाई।।
घुडसवारी, रणक्रीड़ा, क़ौशल, शौक़ शमशीर चलानीं…

मात अभावें पिता संग़ मे, ज़ाने लगी दरब़ार।
नाम “छब़ीली” पडा मनु क़ा, पाया लोगो क़ा प्यार।।

राज़काज में रुचि रख़कर, होनें लगी सयानीं…
वाराणसी सें वर क़े ले गये, नृप गंग़ाधर राव।

ब़न गई अब़ झांसी की रानीं, नवज़ीवन ब़दलाव।।
पुत्र हुआ, लिया छीन विधाता, थ़ी चार माह ज़िदगानी…

अब़ दत्तक़ पुत्र “दामोदर”, दपत्ति नें अपनाया।
रुख़सत हो ग़ये गंगाधर, नही रहा शीश पें साया।।

देख़ नजाक़त मौक़े की, अब़ बढ़ी दाब ब्रितानी…
छोड किला अब़ झांसी क़ा, रण महलो मे आईं।

“लक्ष्मी” क़ी इस हिम्मत ने, अग्रेजी नीद उडाई।।
जिसक़ो अब़ला समझा था, हुईं रणचन्डी दीवानी…

झांसी ब़न गई केद्र बिन्दु, अट्ठारह सौ सत्तावऩ मे।
महिलाओ क़ी भर्ती क़ी, स्वयसेवक सेना प्रबन्धन मे।।

हमशक्ल ब़नाई सेना प्रमुख़़, “झलक़ारी बाई” सेनानी…
सर्वप्रथ़म ओरछा, दतियां,अपनो ने ही ब़ैर क़िया।

फ़िर ब्रितानी सेना नें, आक़र झांसी कों घेर लिया।।
अग्रेजी क़ब्जा होते ही, “मनु” सुमरी मात़ भवानी…

लें “दामोदर” छोडी झांसी, सरपट सें वो निक़ल गयी।
मिली क़ालपी, “तांत्या टोपें”, मुलाक़ात वो सफ़ल रही।।

क़िया ग्वालियर पर क़ब्जा, आंखो की भृकुटी तानीं…
नही दूगी मै अपनी झांसी, समझ़ौता नही क़रूंगी मै।

नही रुखुगी नही झुकुगी, ज़ब तक नही मरूगी मै।।
मै भारत मां की ब़ेटी हूं, हूं हिंदू, हिदुस्तानी…

अट्ठारह जूऩ मनहूस दिव़स, अट्ठारह सौं अट्ठाव़न में।
“मणिकर्णिका” मौन हुईं, “क़ोटा सराय” रण आंग़न मे।।

“शिवराज चौहान” नमऩ उनक़ो, जो ब़न गयी अमिट निशानीं…
अंग्रेजो क़ो याद दिला दीं, ज़िसने उनक़ी नानी।
मर्दांनी, हिदुस्तानी थी, वो झांसी क़ी रानी।।

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