samaj kya hai: समाज एक उद्देश्य पूर्ण समूह होता है। इस समूह के सभी सदस्य एकत्व एवं अपनत्व में बंधे होते हैं। जो की समाज के लिये अनिवार्य गुण है। जैसा की हमे मालूम है की मनुष्य एक चिन्तन शील जीव है वे अपने लम्बे समय के इतिहास में एक संगठन (समूह) के रुप मे रहा है।
मनुष्य जैसे-जैसे विकसित होता होता जा रहा एवं अपने अमूल्य शक्ति का प्रयोग करके जीवन पद्धति को बदलता रहा है। इन्ही जीवन परिवर्तन से आवश्यकताओं की पूर्ती ने मनुष्य को एक सूत्र में बांध दिया है। इन्ही बन्धन से संगठन बनें और यही संगठन समाज कहलाएं, इन्हीं संगठनों का अंग मनुष्य बनता चला गया।।
बढ़ती हुई आवश्यकताओं ने मानव को विभिन्न समूहों एवं व्यवसायों को अपनाते हुए विभक्त करते गये। मनुष्य की आत्मनिर्भरता बढ़ी और इसने मजबूत समाजिक बंधनों को जन्म दिया। जाने- मुलायम सिंंह का जीवन परिचय
समाज की परिभाषा – Samaj kya hai, Paribhasha
samaj kya hai: समाज कार्य प्रणालियो तथा कृतियों की अधिकार सत्ता और परस्पर सम्बन्धों के अनेक समूहों और श्रेणियों की तथा मानव व्यवहार के नियन्त्रण की एक व्यवस्था हैं जो निरन्तर परिवर्तन शील है, यह समाजिक सम्बन्धों का जाल है।
समाज एकता का प्रतीक माना गया है। ये तो सच बात है कि समाज यदि एक जुट है तो उसमें एकता शक्ति होती है। समाज की एकता से ही आज प्रधान ,प्रधानमन्त्री , मुख्यमंत्री , आदि बने पूरे देश को चला रहे हैं।
समाज शब्द का साधारण अर्थ
समाज शब्द के साधारण अर्थ में, समाज का प्रयोग व्यक्तियों के समूह के लिए किया जाता है। किसी भी संगठित या असंगठित समूह को समाज कह दिया जाता है। जैसे हिन्दू समाज, आर्य समाज, ब्रह्म समाज, विद्यार्थी समाज, महिला समाज, बिन्द समाज आदि। समाज एक स्वयं संघ है, संगठन है जिसमें सहयोग देने वाले व्यक्ति एक दूसरे के साथ जुड़े रहते हैं।
समाज का अर्थ – Samaj ka Arth
समाज शब्द का प्रयोग हम दैनिक बोल चाल की भाषा में करते रहते हैं। समाज शब्द का प्रयोग व्यक्तियों के समूह अथवा आंकलन के लिए किया जाता है।
समाज शब्द का साधारण अर्थ है, जिसका प्रयोग लोगों ने अपने आपने ढंग से किया है किसी ने इसका प्रयोग व्यक्तियों के समूह के रुप में, किसी ने समिति के रुप में, तो किसी ने संस्था के रूप में किया है।इसी वजह से समाज के अर्थ में निश्चिंतता का अभाव पाया जाता है।
समाज की प्रमुख विशेषताएं
समाजिक सम्बन्धों की व्यवस्था ही समाज है तथा समाजिक सम्बन्धों की समाज के अनुरूप ही सम्बन्ध होते हैं।समाज की कुछ निजी विशेषताएं होती है। समाज अमूर्त है। समाज एक समाजिक सम्बन्धों का जाल है और समाजिक सम्बन्ध अमूर्त होते हैं। समाजिक सम्बन्ध अमूर्त होने से समाज भी अमूर्त होते हैं। इसलिए यह लिखा गया है कि समाज व्यक्तियों का संग्रह नहीं है यह तो इन मनुष्यों के बीच स्थापित सम्बन्धों की एक व्यवस्था है और इसी दृष्टि से यह अमूर्त है।
समाज मनुष्यों तक सिमित नहीं
समाज केवल मनुष्यों तक सिमित नहीं है बल्कि अन्य जीव भी समाज में रहते हैं।किटपतगो से लेकर पशु पक्षी,गाय भैंस, कुत्ता बिल्ली, तक जीव को भी समाज में रहते देखते हैं।
मानव समाज की एक अलग विशेषता है।मानव समाज में चेतना या जागरूकता पशु समाज की तुलना में अधिक पाई जाती है। और संस्कृति दोनों समाजों को एक दूसरे से पृथक करती है।