विवाह क्या है? विवाह के प्रकार एवं उद्देश्य जाने? | What is Marriage & its type

What is Marriage: विवाह, सामाजिक व धार्मिक मान्यता प्राप्त दो लोगो (स्त्री व पुरुष) के मध्य का एक पवित्र बंधन है। जिस बंधन मे रहकर दाम्पत्ति को परिवार, समाज, धर्म और कई अन्य दायित्यों का निर्वहन करना होता है।

हिन्दू धर्म में विवाह को सोलह संस्कारों में से एक माना जाता है। जो की एक धार्मिक बन्धन है। जो संस्कारों में रहकर अपना दाम्पत्य जीवन सुखमय बनाते है।

विवाह क्या है? विवाह के प्रकार एवं उद्देश्य जाने? | What is Marriage & its type
What is Marriage

विवाह के प्रकार


भारतीय विवाह
: शास्त्रों के अनुसार विवाह आठ प्रकार के होते हैं। 1. ब्रह्मा विवाह 2.दैव विवाह 3. अर्श विवाह 4. प्राजापत्य विवाह 5. असुर विवाह 6. गन्धर्व विवाह 7.राक्षस विवाह 8.पिसाच।

विवाह क्या है? विवाह के प्रकार एवं उद्देश्य जाने? | What is Marriage & its type
Vivah ke Prakar | What is Marriage

इन आठ प्रकार के विवाहों में से ब्रह्म विवाह को ही शुभ माना जाता है क्योंकि ब्रह्म विवाह संस्कारों मान मर्यादो से बंधित रहता है। देव विवाह को भी प्राचीन काल में मान्यता मिली थी। बाकी विवाह को धर्म के सम्मत नहीं माना गया है।

ब्रह्म विवाह

ब्रम्ह विवाह क्या है? : हिन्दू धर्मानुसार विवाह एक ऐसा शुभ कार्य है जिसे बहुत ही सोच समझ कर और समझदारी से किया गया एक धार्मिक बंधन है। दोनों पक्षों की सहमति से समान वर्ग के सुयोग्य वर से कन्या की इच्छानुसार विवाह निश्चित कर देना ही ब्रह्म विवाह कहलाता है।

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हिन्दू धर्म में विवाह संस्था को समाजिक व धार्मिक मान्यता का मजबूत आधार प्रदान है। हिन्दू धर्म में विवाह को जीवन का आवश्यक अंग माना जाता है। जिसके परिणाम स्वरुप व्यक्ति का समस्त जीवन संस्कारों और घर गृहस्थी में व्यतीत होता है।

विवाह के बाद ही व्यक्ति जिम्मेदार और गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता है और विवाह के बाद ही व्यक्ति पूर्ण बनता है। क्योंकि पत्नी को अर्धांगिनी कहा गया है।
इस प्रकार हिन्दू विवाह धर्म संस्कार मर्यादा प्रधान होने के कारण स्वस्थ समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  • माता पिता कन्या के विना सहमति से उसका विवाह किसी दूसरे वर्ग में या धनवान व प्रतिष्ठित वर से कर देना ही प्रजापत्य विवाह कहलाता है गंधर्व विवाह – इस विवाह का वर्तमान नाम प्रेम विवाह है। परिवार वालों की सहमति के बिना लड़का लड़की, बिना किसी रीत रिवाज के आपस में शादी कर लेना गन्धर्व विवाह कहलाता है।

विवाह में संस्कार एवं ऋण

सभी मनुष्य के ऊपर तीन ऋण होते हैं। देवृऋण, ऋषिऋण, पितृऋण ये तीन ऋण होते हैं। यज्ञमय से, देवृ ऋण, स्वाध्याय से ऋषिऋण तथा उचित रीति रिवाज से ब्रम्ह विवाह करके अपने पितरों के श्रद्ध तर्पण के योग्य धार्मिक एवं संस्कारी पुत्र उत्पन्न करके पितृऋण का परिशोधन होता है।

इस प्रकार पितरों की सेवा तथा सदधरम की पालन करने की परम्परा सुरक्षित रखने के लिए सन्तान उत्पन्न करना विवाह का परम उद्देश्य है। यही कारण है कि हिन्दू धर्म में ब्रम्ह विवाह को एक पवित्र संस्कार के रूप में मान्यता दी गई है।

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एक विवाह की प्रथा

एक विवाह की व्यवस्था का प्रचलन सबसे अधिक होने का बड़ा कारण यह है कि अधिकांश समाजों में सतीपुरूषो की संख्या के संतुलन को बिगाड़ देते हैं किन्तु यदि यह संतुलन बना रहता है और एक विवाह की व्यवस्था में सहायक होता है। क्योंकि यह अधिक व्यक्तियों के विवाह का अवसर प्रदान करता है। सभ्यता की उन्नति और प्रगति के साथ कई कारणों से यह प्रथा अधिक प्रचलित होती है।

विवाह एक समाज का कानून हैं – मानव समाज में किसी भी नर नारी को उस समय तक दाम्पत्य जीवन बिताने और सन्तान उत्पन्न करने का अधिकार नहीं दिया जाता जब तक विवाह न हो जाए।

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वैवाहिक रीति रिवाजों में परिवर्तन

भारत में समाजिक परिवर्तन ने अजीबोगरीब स्थिति पैदा की है। यह आशा की जाती थी कि गैर जरूरी रीति रिवाजों को छोड़ दिया जायेगा। सभी समाजों में धर्म और समाज सुधारकों ने हमेशा इस बात का आग्रह किया कि निर्थरक रीति रिवाजों पर व्यर्थ खर्च न किया जाए। किन्तु ज्यादा तर यह देखने को मिलता है कि जागरूक और अमीर व्यक्ति ही इसको बढ़ावा देने में सक्षम है।

जीवन साथी के चयन में परिवर्तन

भारत जैसे महान देशों में जहां जीवन साथी के चुनाव का अधिकार पूरी तरह से मात पिता और अंग्रजों का ही होता था, वहां परिवर्तन के लक्षण दिखाई देने लगे हैं। लड़की लड़का के राय को भी जीवन साथी के चुनने में काफी अधिक महत्व दिया जाने लगा है।
ऐसी स्थिति में जहां बच्चों से कोई राय सलाह नहीं लिया जाता था कि उनका विवाह किससे होने वाला है। अब यह स्थिति आ गई है कि लड़के लड़कियों से राय ली जाती उनकी सहमति प्राप्त कर फिर निर्णय लिया जाता है।

विद्वानों द्वारा कहा गया विवाह शब्द का मत

जेम्स के अनुसार- विवाह मानव समाज में सार्वभौमिक रूप से पाई जाने वाली संस्था है, जो यौन संबंध, घर गृहस्थी, प्रेम एवं मानव स्तर पर व्यक्ति को जैवकीय मनौवैज्ञानिक, नैतिक और आध्यात्मिक विकास की आवश्यकताओं को पूरा करतीं हैं। मजूमदार और मदान का कहना है विवाह एक समाजिक बन्धन या धार्मिक संस्कार है। जो दो विषम लिंग के व्यक्तियों को एक करता है।

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