बहादुर शाह जफर की 50 प्रसिध्द शायरी – Bahadur Shah Zafar shayari

बहादुर शाह जफर का जन्म 24 अक्टूबर 1775 ने हुआ था। यह मुगल सम्राज्य के अंतिम शासक एव प्रसिध्द उर्दू शायर थे। इनके पिता अकबर द्वितीय व माता लालबाई थी। बहादुर शाह जफर के पिता के मृत्यू के बाद 1837 मे यह मुगल बादशाह बना।

आपको बता दू बहादुर शाह जफर एक बादशाह के साथ-साथ प्रसिध्द उर्दू शायर (Bahadur Shah Zafar shayari) भी थे। जिनकी शायरी निम्न है।

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Bahadur Shah Zafar shayari

बहादुर शाह जफर की शायरी – Bahadur Shah Zafar ki Shayari

हम अपना इश्क़ चमकाएँ तुम अपना हुस्न चमकाओ
कि हैराँ देख कर आलम हमें भी हो तुम्हें भी हो

दौलत-ए-दुनिया नहीं जाने की हरगिज़ तेरे साथ
बाद तेरे सब यहीं ऐ बे-ख़बर बट जाएगी

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Bahadur Shah Zafar shayari

हाल-ए-दिल क्यूँ कर करें अपना बयाँ अच्छी तरह
रू-ब-रू उन के नहीं चलती ज़बाँ अच्छी तरह

ऐ वाए इंक़लाब ज़माने के जौर से
दिल्ली ‘ज़फ़र’ के हाथ से पल में निकल गई

याँ तक अदू का पास है उन को कि बज़्म में
वो बैठते भी हैं तो मिरे हम-नशीं से दूर

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Bahadur Shah Zafar shayari

यार था गुलज़ार था बाद-ए-सबा थी मैं न था
लाएक़-ए-पाबोस-ए-जानाँ क्या हिना थी मैं न था

सब मिटा दें दिल से हैं जितनी कि उस में ख़्वाहिशें
गर हमें मालूम हो कुछ उस की ख़्वाहिश और है

भरी है दिल में जो हसरत कहूँ तो किस से कहूँ
सुने है कौन मुसीबत कहूँ तो किस से कहूँ

तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें
हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया

Bahadur Shah Zafar shayari

बहादुर शाह जफर की हिंदी शायरी – Bahadur Shah Zafar shayari in Hindi

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Bahadur Shah Zafar shayari

कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहां है दिल-ए-दाग़-दार में

इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल
दुनिया है चल-चलाव का रस्ता सँभल के चल

हर बात में उस के गर्मी है हर नाज़ में उस के शोख़ी है
आमद है क़यामत् चाल भरी चलने की फड़क फिर वैसी है

शमशीर बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी है
जूड़े की गुंधावत बहर-ए-ख़ुदा ज़ुल्फ़ों की लटक फिर वैसी है

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Bahadur Shah Zafar shayari

ऐ बर्क़-ए-तजल्लि बहर-ए-ख़ुदा न जला मुझे हिज्र में शम्मा सा
मेरी ज़ीस्त है मिस्ल-ए-चिराग़-ए-सहर मेरा चैन गया मेरी नींद गई

न हरम में तुम्हारे यार पता न सुराग़ देर में है मिलता
कहाँ जा के देखूँ मैं जाऊँ किधर मेरा चैन गया मेरी नींद गई

रोज़-ए-ममूरा-ए-दुनिया में ख़राबी है ‘ज़फ़र’
ऐसी बस्ती से तो वीराना बनाया होता

Bahadur Shah Zafar shayari

अपना दीवाना बनाया मुझे होता तूने
क्यों ख़िरद्मन्द बनाया न बनाया होता

मैं सिसकता रह गया और मर गए फ़रहाद ओ क़ैस
क्या उन्हीं दोनों के हिस्से में क़ज़ा थी मैं न था

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Bahadur Shah Zafar shayari

दिल को दिल से राह है तो जिस तरह से हम तुझे
याद करते हैं करे यूं ही हमें भी याद तू

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी

Bahadur Shah Zafar shayari

इश्क शायरी

मर्ग ही सेहत है उस की मर्ग ही उस का इलाज
इश्क़ का बीमार क्या जाने दवा क्या चीज़ है

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Bahadur Shah Zafar shayari

औरों के बल पे बल न कर इतना न चल निकल
बल है तो बल के बल पे तू कुछ अपने बल के चल

बहादुर शाह जफर की प्रसिध्द हिंदी मे – Bahadur Shah Zafar Famous Shayari Hindi

हाथ क्यूँ बाँधे मिरे छल्ला अगर चोरी हुआ
ये सरापा शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना थी मैं न था

न दूंगा दिल उसे मैं ये हमेशा कहता था
वो आज ले ही गया और ‘ज़फ़र’ से कुछ न हुआ

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ऐ वाए इंक़लाब ज़माने के जौर से
दिल्ली ‘ज़फ़र’ के हाथ से पल में निकल गई

चाहिए उस का तसव्वुर ही से नक़्शा खींचना
देख कर तस्वीर को तस्वीर फिर खींची तो क्या

कितना है बद-नसीब ‘ज़फ़र’ दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी

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Bahadur Shah Zafar shayari

दौलत-ए-दुनिया नहीं जाने की हरगिज़ तेरे साथ
बाद तेरे सब यहीं ऐ बे-ख़बर बंट जाएगी

लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-ना-पाएदार में

इधर ख़्याल मेरे दिल में ज़ुल्फ़ का गुज़रा
उधर वो खाता हुआ दिल में पेच-ओ-ताब आया

आँखों में रोते-रोते नम भी नहीं अब तो
थे मौजज़न जो पहले वो तूफ़ाँ कहाँ हैं

सुबह रो-रो के शाम होती है
शब तड़प कर तमाम होती है

Bahadur Shah Zafar

कब तक रहें ख़मोश के ज़ाहिर से आप की
हम ने बहुत सुनी कस-ओ-नाकस की बातचीत

बर यही है हमेशा ज़ख़्म पे ज़ख़्म
दिल का चाराग़रों ख़ुदा हाफ़िज़

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