भारतीय लोकगीत एवं उसके प्रकार जाने, भजन, विवाह गीत, सोहर, त्योहार गीत, आदि है शामिल इसमे

भारतीय लोकगीत: लोक संगीत किसी भी संस्कृति में आम जनता द्वारा पारंपरिक रूप से प्रचलित गीत-संगीत को बोला जाता है। भारतीय संस्कृति मे महिलाएँ मुंडन, उपनयन, विवाह, मटकोड़, ज्यौनार, जन्म आदि के अवसरों पर स्थानीय गीत गाती हैं। इन गीतों को सोहर, , सोहाग , बन्नी बन्ना, विवाह,गारी, आदि कहा जाता है।

भारतीय लोकगीत
भारतीय लोकगीत गाते गायक

भारतीय लोकगीत

सभी संस्कृतियो ने अपने यूगीन परिस्थीयो के अनुसार अपने संस्कृति एवं सभ्यता का अविष्कार किया। लोकगीत भी उन्ही संस्कृतियो का एक प्रारुप है। भारतीय संस्कृति मे नानाप्रकार के लोकगीत गाये जाते है।

भिन्न-भीन्न अवसरो के लिये अलग-अलग है। जैसे की बच्चे के जन्म पर – सोहर लोकगीत, शादी विवाह हेतू- विवाह गीत, अध्यात्म एवं आस्था के लिये भजन, किर्तन, किसी के सम्मान हेतु- स्वागत गीत आदि प्रकार के लोकगीतो का प्रचलन है। जिनका विस्तार निम्न है।

भजन गीत

भारतीय लोकगीत - भजन
भारतीय लोकगीत: भजन गाती गायिका

भारतीय लोकगीत: भजन एक ऐसा गीत है जो सब रसम के साथ, तथा हर मौसम में गाया जाने वाला गीत है।कही भी किसी भी जगह,गा सकते हैं। कुछ ऐसे गाने होते हैं जो शुरू का अलग गाना और लास्ट का अलग गाना होता है।

लेकिन भजन गीत चाहें शुरू में गांवों चाहें लास्ट में गांवों, हर गीतों का साथ देता है। वैसे तो रामायण,किर्तन, गृहप्रवेश, कथा, आदि में तो गाया ही जाता है। पर सब गीतो के साथ भी इसका बहुत महत्व है। भजन गीत में हम ज्यादातर ईश्वर का गुणगान करते हैं।

स्वागत गीत

यह गीत किसी की स्वागत करने के लिए गया जाता है यह भी लोकगीत में ही आता है और लोगों को बहुत ही लोकप्रिय है।यह ज्यादा तर स्कूलों,कॉलेजों और संस्थाओं व बड़ी बड़ी मंडली में स्वागत के लिए गाया जाता है। इसमें ज्यादा लड़कियां भाग लेती है।यह गीत बहुत सुन्दर ढंग से रचा जाता है, कहीं भी बुरे शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता।यह गीत साधारण लोग भी रच सकते हैं।

त्योहार गीत

होली गीत

भारतीय लोकगीत: फागुन के महिने में गाया जाने वाला गीत फाग गीत के नाम से जाना जाता है।यह फागुन के महिने में बड़े ही उत्साह और उमंग के साथ गाया जाता है।इस गाने में ज्यादा तर पुरुष भाग लेते हैं।

होली गीत भी पारंपरिक रूप से लोकगीत ही।इस गाने में कुछ बुरे शब्द का प्रयोग किया जाता है।इसके भी प्रकार होते हैं । जैसे। भक्ति होली, विरहा माडल,पति पत्नी की होली, देवर भाभी जी की होली, आदि।

कजरी लोकगीत

भारतीय लोकगीत: कजरी पर उपस्थित महिलायें
भारतीय लोकगीत: कजरी पर उपस्थित महिलायें

हमारे यहां सावन के महिने में गाये जाने वाले गीत को कजरी कहते हैं।सावन और भादवके माह में कुछ भी काम करतें समय कंजरी ही गुनगुनाते सुनेंगे। कुछ महिलाएं टोली बनाकर एक दूसरे को पकड़ कर झूम झूमकर कंजरी गाती है, कुछ लोग झूले पर बैठ कर दो चार लोग कजरी गाती है, खुशियां मनाती हैं। कजरी सावन की मनभावन गीत है।।

विवाह गीत

जब शादी विवाह पड़ता है तो दस दिन पहले से ही खुशियां मनाई जाती है। और गांव की अगल बगल के औरतों को बुलाकर विवाह गीत गवाया जाता है।उसी बहाने सब एक साथ जिसके घर में शादी पड़ी रहती है आती विवाह गाती, फिर वहां लड्डू, मिठाई कुछ भी बांटी जाती है,। आइए हम विवाह गीत रस्मों के हिसाब से जानते हैं ।कब क्या गाया जाता है।

भारतीय लोकगीत एवं उसके प्रकार जाने, भजन, विवाह गीत, सोहर, त्योहार गीत, आदि है शामिल इसमे
क्लिक करे और विवाह के प्रकार पढे

विवाह संबंधी संस्कार गीत पूरे भारतवर्ष में सर्व प्रसिद्ध हैं। प्रत्येक क्षेत्र की भाषा में यह गीत विवाह की विभिन्न रस्मों के हिसाब से गाए जाते हैं। विवाह संबंधी प्रमुख रस्में इस प्रकार हैं-

सुहाग गीत
सेहरा बंधी के गीत
मंडप के गीत
फेरों के गीत
विदाई गीत
वधू प्रवेश के गीत
विवाह गीत
तिलक गीत

विवाह गीतो का प्रकार (भारतीय लोकगीत)

विवाह के समय हर रसम पर अलग अलग पारम्परिक लोकगीत विवाह गाती है। विवाह गीत भी एक लोग गीत ही है यह भी गांव की महिलाओं द्वारा रचित विवाह गीत है। विवाह गीत के दो प्रकार होते हैं,बेटे का विवाह और बेटी का विवाह। दोनों का विवाह अलंग अलंग तरीके से गाया जाता है।

सोहर लोकगीत

जैसा कि सभी जानते हैं बच्चों के जन्म पर सोहर गाया जाता है। और बेटी के जन्म पर नहीं।आज भी समाज में लिंग भेद है ।इस आधुनिक युग में बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं है।आज की बेटियां ज्यादा जिम्मेदार वफादार और पढ़ाकू होती है।हम चाहते हैं कि बेटी के जन्म पर सोहर गा कर खुशियां मनाई जाय। सोहर के भी कई प्रकार होते हैं। बेटी का सोहर।

श्री कृष्ण जन्म सोहर

मुंडन सोहर गीत

भारतीय लोकगीत: मुंडन को मूडन भी कहा जाता है चूनी का अर्थ है, केश गुच्छ या चोटी जो पहली बार केस काटने के बाद सिर्फ रखी जाती है। धर्म शास्त्र के अनुसार इसे जन्म के पहले या तीसरे वर्ष किया जाता है। यह संस्कार पूरे रीति-रिवाज एवं धार्मिक नियमों के अनुसार निभाया जाता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top