kumar vishwas ki kavita: वर्तमान भारत के प्रसिध्द कवियों मे डाक्टर कुमार विश्वास अग्रणी है। इनका जन्म 10 फरवरी 1970 को उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद में एक मध्यवर्गी परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम डॉ॰ चन्द्रपाल शर्मा, एवंं माता का नाम रमा शर्मा है।
वैसे तो विश्वास जी की सभी शायरिया / कविताये लोकप्रिय है। परंतु अधिकांश भारतीय इन्हे कोई दिवाना कहता है कोई पागल समझता है। कविता से पहचानते है। ये डाक्टर कुमार विश्वास के नाम से भी लोकप्रिय है इनके पत्नी का नाम मंजू शर्मा है। आइये कुमार विश्वास की कवितायो (kumar vishwas ki kavita) को पढे
कुमार विश्वास की कवितायें – Kumar Vishwas ki Kavita
ज़िन्दगी की हसरत
kumar vishwas ki kavita
खुद को आसान कर रही हों ना।
हम पे अहसान कर रही हो ना।।
ज़िन्दगी हसरतों की मय्यत है न।
फिर भी अरमान कर रही हो ना।।
नींद, सपने, सुकून, उम्मीदें,
कितना नुक्सान कर रही हो ना।
हम ने समझा है प्यार पर तुम तो।
जान पहचान कर, कर रहीं हों न।।
कवि – kumar vishwas
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
kumar vishwas ki kavita
कोई दिवाना कहता है, कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को,बस बादल समझता है।
मैं तुझसे दूर कैसा हूं,तू मुझसे दूर कैसी हो
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता हैं
मोहब्बत एक अहसासो की पावन सी कहानी है
कभी कबिरा दिवाना था,कभी मीरा दीवानी थी
यहां सब लोग कहते हैं मेरी आंखों में आसूं है
जो तू समझे तो मोती है और न समझे तो पानी है।
कवि – kumar vishwas
तुम गये क्या, शहर सूना कर गये
kumar vishwas ki kavita
तुम गये क्या, शहर सुना कर गए
दर्द का आकर दूना कर गए।
जानता हूं फिर सुनाओगे मुझे मौलिक कथाएं
शहर भर की सुचनाएं उम्र भर की व्यस्तताए
पर जिन्हें अपना बनकर भूल जाते हो सदा तुम
वे तुम्हारे बिन तुम्हारी वेदना किस्को सुनाएं
फिर मेरा जीवन उदासी का नमूना कर गये
तुम गये क्या शहर सुना कर गए।
मैं तुम्हारे यादों के मीठे तराने बुन रहा था
वक्त खुद जिनको मगन हो सांस थामे सुन रहा था
तुम अगर कुछ देर रूकते तो तुम्हें मालूम होता
किस तरह बिखरे पलों में बहाने चुन रहा था
रात भर हां हां किया पर पारतह ना कर गए
तुम गये क्या शहर सुना कर गए।।
कवि – kumar vishwas
चल नही पाता, पैरो मे जंजीर लेके कविता
अटल बिहारी वाजपेयी की प्रसिध्द कविताये
देवदास मत होना
kumar vishwas ki kavita
खुद से भी मिल न सको, इतना पास मत होना
इश्क तो करना मगर देवदास मत होना
देखना, चाहना ,फिर मांगना या खो देना
ये सारे खेल है इसमें उदास मत होना।
जो भी तुम चाहो फकत चाहने से मिल जाए
खास तो होना पर इतना भी खास मत होना
किसी से मिलकर नमक आदतों में घुल जाए
वस्ल की दौड़ती दरिया का प्यास मत होना
मेरा वजूद फिर एक बार बिखर जायेगा
जरा सुकून से हूं आस पास मत होना।।
कवि – kumar vishwas
तुम्हारी छत पर निगरानी बहुत ही
kumar vishwas ki kavita
तुम्हें जीने में आसानी बहुत है
तुम्हारे खून में पानी बहुत है।
ज़हर सूली ने गाली गोलियों ने
हमारी जात पहचानती बहुत है।
कबूतर इश्क का उतरे तो कैसे
तुम्हारी छत पर निगरानी बहुत है।
इरादा कर लिया गर खुदकुशी का
तो खुद की आंखों का पानी बहुत है।
तुम्हारे दिल की मनमानी मेरी जान
हमारे दिल ने भी मानी बहुत है।।
कवि – kumar vishwas