धर्मो रक्षति रक्षितः पूर्ण श्लोक | Dharmo Rakshati Rakshitah

धर्मो रक्षति रक्षितः श्लोक का अर्थ जाने । Dharmo Rakshati Rakshitah shlok ka arth | dharmo rakshati rakshitah | dharmo rakshati rakshitah in hindi | dharmo rakshati rakshitah meaning in hindi | धर्मो रक्षति रक्षितः

“धर्मो रक्षति रक्षितः” श्लोक की उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई है जिसका अर्थ होता है “धर्म की रक्षा करने वाले को धर्म रक्षित करता है।” यह श्लोक हिंदू धर्म के महत्व और धर्म की सुरक्षा की महत्त्वपूर्णता को दर्शाती है।

Dharmo Rakshati Rakshitah
धर्मो रक्षति रक्षितः फोटो

धर्मो रक्षति रक्षितः श्लोक को पूर्णत: समझकर अपनाने और अनुसरण करने वाले व्यक्ति को धर्म संरक्षित रखता है। यह श्लोक मुख्यरुप से महाभारत के युद्ध के समय भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को मार्गदर्शन दिखाने के लिये कहाँ गया था।

धर्मो रक्षति रक्षितः पूर्ण श्लोक – dharmo rakshati rakshitah in hindi

धर्मो रक्षति रक्षितः श्लोक सस्कृति भाषा मे लिखित हिंदू धर्मग्रंथ महाभारत व मनुस्मृति का एक अंश है। इस श्लोक का अर्थ है की, “जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है।”

धर्मो रक्षति रक्षितः पूर्ण श्लोक – dharmo rakshati rakshitah Shlok

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ॥

धर्मो रक्षति रक्षितः पूर्ण श्लोक

धर्मो रक्षति रक्षितः का अर्थ – तुम धर्म की रक्षा करो, धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा।

अर्थात:- जो मनुष्य धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। धर्म की रक्षा करने वाला मनुष्य कभी पराजित नही होता, क्योकि उसकी रक्षा स्वय धर्म (ईश्वर, मनुष्य, प्रकृति, ब्रम्हाण्ड, इत्यादि) करता है।

धर्मो रक्षति रक्षितः सुने

जाने- गायत्री मंत्र का अर्थ

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

धर्म से जुडा महत्वपूर्ण श्लोक

धर्मो रक्षति रक्षितः श्लोक की उत्पत्ति – dharmo rakshati rakshitah sloka ki Utpatti

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय: हमारा भारत देश एक आध्यात्मिक देश है, ये देवी-देवताओ की भूमी भी मानी जाती है, जब भी पृथ्वी पर अन्याय, दुष्टो का प्रकोप बढता है, तब-तब ईश्वर मानव रुप लेकर पृथ्वी पर जन्म लेते है। और पृथ्वी को अन्यान मुक्त करते है, हमारे भारत देश को लाखो-करोडो वर्ष पहले से ही अध्यात्मिक देश, विश्वगुरु, व संतो की नगरी, मानी जाती है।

धर्मो रक्षति रक्षित: श्लोक की उत्पत्ति – धर्मो रक्षति रक्षितः एक लोकप्रिय संस्कृत शलोक है जो महाभारत और मनुस्मृति के 8वें अध्याय के 15वें श्लोक से लिया गया है। जिसका अर्थ है कि जो लोग ’धर्म’ की रक्षा करते हैं, उनकी रक्षा स्वयं (धर्म से) हो जाती है।

धर्म से जुड़े महत्वपूर्ण लेख

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्।।

सत्येन पूयते साक्षी धर्मः सत्येन वर्धते।
तस्मात् सत्यं हि वक्तव्यं सर्ववर्णेषु साक्षिभिः।।

नास्ति सत्यसमो धर्मो न सत्याद्विद्यते परम्।
न हि तीव्रतरं किञ्चिदनृतादिह विद्यते।।

सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्याऽभ्यासेन रक्ष्यते।
मृज्यया रक्ष्यते रुपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते।।

मां दुर्गा का मंत्र

धर्मार्थकाममोक्षाख्यं य इच्छेच्छ्रेय आत्मन: ।
एकं ह्येव हरेस्तत्र कारणं पादसेवनम् ॥

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

तर्कविहीनो वैद्यः लक्षण हीनश्च पण्डितो लोके।
भावविहीनो धर्मो नूनं हस्यन्ते त्रीण्यपि।।

अस्थिरं जीवितं लोके ह्यस्थिरे धनयौवने।
अस्थिराः पुत्रदाराश्च धर्मः कीर्तिर्द्वयं स्थिरम्।।

स जीवति गुणा यस्य धर्मो यस्य जीवति।
गुणधर्मविहीनो यो निष्फलं तस्य जीवितम्।।

विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गृहेषु च।
रुग्णस्य चौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च।।

प्रामाण्यबुद्धिर्वेदेषु साधनानामनेकता।
उपास्यानामनियमः एतद् धर्मस्य लक्षणम्।।

अविज्ञाय नरो धर्मं दुःखमायाति याति च।
मनुष्य जन्म साफल्यं केवलं धर्मसाधनम्।।

सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्याऽभ्यासेन रक्ष्यते।
मृज्यया रक्ष्यते रुपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते।।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय– इस लेख मे हमने धर्मो रक्षति रक्षितः (Dharmo Rakshati Rakshitah) का अर्थ जाना, यह लेख आप को कैसा लगा, कमेंट मे अपना सुझाव अवश्य दे, साथ ही हमारे साथ जुडे – Facebook

3 thoughts on “धर्मो रक्षति रक्षितः पूर्ण श्लोक | Dharmo Rakshati Rakshitah”

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