एकलव्य की कहानी: भारत देश अपने अद्भुद संस्कृत व सभ्यता के कारण पूरे विश्व मे अपनी अलग पहचान रखता है। यहाँ योग, आयुर्वेद, महान ऋषि मुनि, अद्भुद शिक्षा और भिन्नता मे अखण्डता जैसे कई ऐसे सकारात्मक पहलू मिल जायेंगे, जो हमे अन्य देशो से अलग बनाते है।
लेकिन इन्ही सकारात्मक पहलुयो के साथ-साथ हमारे देश मे कई नकारात्मक पहलू भी है, जैसे- जातिय भेदभव, लैंगिक भेदभाव, पाखण्ड आदि सम्मिलित है। हम इस लेख मे जातिय भेदभाव से प्राताणित महान शिष्य एकल्व्य की गाथा पढेंगे, हमारा आपसे सुझाव है की अपनी राय कमेंट मे जरुर बताये।
एकलव्य की कहानी – Eklavy ki Kahani
यह कहानी महाभारत काल की है। जब एक लडका धनु विद्या सीखना चाहता था लेकिन छोटी जाति होने के कारण उसे नही सीखाया गया। उस बच्चे का नाम एकलव्य था।
एकलव्य धनु विद्या सीखने के उद्देश्य से गुरू द्रोणाचार्य के आश्रम में गया। किन्तु निषाद पुत्र होने के कारण द्रोणाचार्य ने उन्हें धनुष विद्या सिखाने से इन्कार कर दिया। क्योकी छोटी जाति को शिक्षा लेने का हक नही था। एकलव्य की उम्र कम थी इसलिए उन्हें ये नहीं पता था कि सिर्फ बड़ी जाति के लोग ही शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। छोटी जाति को शिक्षा से वंचित किया जाता था। बेचारा एकलव्य परेशान होकर एक वन में चला गया।
उन्होंने ने द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाई और उस मूर्ति को गुरु मानकर धनुष विद्या का अभ्यास करने लगा। बहुत मन लगाकर अभ्यास किया और थोड़े समय में वह धनुष विद्या में निपुण हो गया।
एक दिन कौरव तथा पांडव गुरु द्रोणाचार्य के साथ शिकार के लिए उसी वन में गए। जहां पर एकलव्य अपना आश्रम बनाकर धनु विद्या का अभ्यास कर रहा था। उन राजकुमारों का कुत्ता भटक कर एकलव्य की कुटिया के पास पहुचा|
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उस समय एकलव्य अभ्यास कर रहे थे उन्हें देखकर कुत्ता भौंकने लगा। कुत्ते के भौंकने से एकलव्य की साधना में बांधा पड रही थी अतः उसने अपने बाणों से कुत्ते का मुंह बन्द कर दिया एकलव्य ने ऐसे बाण चलाया कि कुत्ते को किसी प्रकार की चोट नहीं आई।
कुत्ते को लौटने पर कौरव पांडव तथा स्वयं द्रोणाचार्य यह कौशल देखकर दंग रह गए और बाण चलाने वाले की खोज करते हुए एकलव्य के पास पहुंचे। उन्हें यह जान कर और भी आश्चर्य हुआ कि द्रोणाचार्य को अपना गुरु मानकर स्वयं ही अभ्यास से यह विद्या प्राप्त की है। गुरु द्रोणाचार्य मन ही मन सोच रहे हैं कि यह निम्न जाति का बालक कैसे उच्च गुणों से युक्त है। इतना सोचते हुए उन्होंने कहा अच्छा तो अब तुम हमें गुरूदक्षिणा दो। एकलव्य ने कहा आज्ञा दिजिए गुरुदेव गुरु दक्षिणा में क्या भेंट दूं।
तब गुरु द्रोणाचार्य ने कहा जब तुने मुझे गुरु माना है तो गुरू दक्षिणा देनी होगी। मुझे गुरू दक्षिणा के रूप में अपने दाएं हाथ का अंगूठा दे दो। एकलव्य ने तुरंत तलवार से दाएं हाथ का अंगूठा काटकर उनकी ओर बढा दिया
एकलव्य को सच्ची लगन के साथ स्वयं सीखी गई धनु विद्या और गुरु भक्ति के लिए जाने जाते हैं। कहते हैं कि हरियाणा राज्य में गुड़गांव शहर के खांडसा गाव में महाभारत प्रसिद्ध एकलव्य के सम्मान में है लोक कथाओं के अनुसार यह एकलव्य का एक मात्र मन्दिर है और वह यह स्थान है जहां एकलव्य ने अपना अंगूठा काटकर गुरु द्रोण को अर्पित किया था।
लेखक के विचार
गुरु द्रोणाचार्य ने इतना ग़लत क्यों किया, जब पढ़ाने से इन्कार कर दिया तो गुरू दक्षिणा लेने का अधिकार नहीं था। जबकी जातीय भेदभाव मनुष्य की बनाई हुई जाल है। जिसमे उच्च जाति के लोग छोटी जाति के लोगो पर राज करना चाहते है। जो की पूर्णत गलत है।