नमस्कार पाठको! आज हम इस लेख की शुरुआत एक संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlok) से करते है, जो इस प्रकार है। उदये सविता रक्तो रक्त: श्चास्तमये तथा। सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता॥ अर्थात – सूर्य उदय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त होते समय भी लाल होता है इससे यह परिभाषित होता है की महापुरुष सुख और दुःख में समान रहते हैं।
श्लोक हिंदी & संस्कृत | Shlok in Hindi
पुस्तकस्था तु या विद्या ,परहस्तगतं च धनम् |
अर्थात् : पुस्तक में रखी विद्या तथा दूसरे के हाथ में गया धन—ये दोनों ही ज़रूरत के समय हमारे किसी भी काम नहीं आया करते |
कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद् धनम् ||
श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन ,
अर्थात् : कानों की शोभा कुण्डलों से नहीं अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है | हाथ दान करने से सुशोभित होते हैं न कि कंकणों से | दयालु / सज्जन व्यक्तियों का शरीर चन्दन से नहीं बल्कि दूसरों का हित करने से शोभा पाता है |
दानेन पाणिर्न तु कंकणेन ,
विभाति कायः करुणापराणां ,
परोपकारैर्न तु चन्दनेन ||
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् |
अर्थात् : महर्षि वेदव्यास जी ने अठारह पुराणों में दो विशिष्ट बातें कही हैं | पहली –परोपकार करना पुण्य होता है और दूसरी — पाप का अर्थ होता है दूसरों को दुःख देना |
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ||
अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् |
यह मेरा है ,यह उसका है ; ऐसी सोच संकुचित चित्त वोले व्यक्तियों की होती है;इसके विपरीत उदारचरित वाले लोगों के
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् |
लिए तो यह सम्पूर्ण धरती ही एक परिवार जैसी होती है |
चन्दनं शीतलं लोके ,चन्दनादपि चन्द्रमाः |
संसार में चन्दन को शीतल माना जाता है लेकिन चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होता है | अच्छे मित्रों का साथ चन्द्र और
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः ||
चन्दन दोनों की तुलना में अधिक शीतलता देने वाला होता है |
motivational bhagwat geeta shlok in hindi
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
द्वितीय अध्याय, श्लोक 47 / Shlok 47
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
हिंदी अनुवाद: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों में कभी नहीं… इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो और न ही काम करने में तुम्हारी आसक्ति हो।
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
(तृतीय अध्याय, श्लोक 21)
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
हिंदी अनुवाद: श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। वह (श्रेष्ठ पुरुष) जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करता है, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।
श्री कृष्ण जी के 20 प्रसिध्द मंत्र एवं अर्थ
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
(तृतीय अध्याय, श्लोक 21)
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
हिंदी अनुवाद: श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। वह (श्रेष्ठ पुरुष) जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करता है, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
(अष्टादश अध्याय, श्लोक 66)
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥
हिंदी अनुवाद: सभी धर्मो को छोड़कर मेरी शरण में आ जाओ. में तुम्हे सभी पापो से मुक्त कर दूंगा, इसमें कोई संदेह नहीं हैं।
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मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है…
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 63)
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
अर्थ: क्रोध से मनुष्य की मति-बुदि्ध मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है, कुंद हो जाती है। इससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।
आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं…
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 23) Shlok 23
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत॥
अर्थ: आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। यहां श्रीकृष्ण ने आत्मा के अजर-अमर और शाश्वत होने की बात की है।
सत्वं सुखे सञ्जयति रज: कर्मणि भारत।
bhagavad Geeta
ज्ञानमावृत्य तु तम: प्रमादे सञ्जयत्युत॥
इस भगवत गीता श्लोक (Bhagwat Geeta shlok in hindi) में श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है – “हे अर्जुन! सत्त्वगुण मनुष्य को सुख में बाँधता है, रजोगुण मनुष्य को सकाम कर्म में बाँधता है, और तमोगुण मनुष्य के ज्ञान को ढँक कर प्रमाद में बाँधता है।”
यो न ह्यष्यति न द्वेष्टि न शोचति न कांक्षति।
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः।।
इस भगवत गीता श्लोक (Bhagwat Geeta shlok in hindi) में श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है कि जो न कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न कामना करता है तथा जो शुभ और अशुभ सम्पूर्ण कर्मों का त्यागी है – वह भक्तियुक्त पुरुष मुझको प्रिय है।
Motivation Shlok in hindi
यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् |
एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति ||
अर्थात् : जैसे एक पहिये से रथ नहीं चल सकता है उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है |
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः |
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ||
अर्थात् : मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |
अलसस्य कुतो विद्या , अविद्यस्य कुतो धनम् |
अधनस्य कुतो मित्रम् , अमित्रस्य कुतः सुखम् ||
अर्थात् : आलसी को विद्या कहाँ अनपढ़ / मूर्ख को धन कहाँ निर्धन को मित्र कहाँ और अमित्र को सुख कहाँ |
उदये सविता रक्तो रक्त:श्चास्तमये तथा।
सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता॥
अर्थात् : उदय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त होते समय भी लाल होता है, सत्य है महापुरुष सुख और दुःख में समान रहते हैं॥
विद्या मित्रं प्रवासेषु ,भार्या मित्रं गृहेषु च |
व्याधितस्यौषधं मित्रं , धर्मो मित्रं मृतस्य च ||
अर्थात् : ज्ञान यात्रा में ,पत्नी घर में, औषध रोगी का तथा धर्म मृतक का ( सबसे बड़ा ) मित्र होता है |