मुगल शासक बहादुर शाह जफर की प्रसिध्द शायरी

हम अपना इश्क़ चमकाएँ तुम अपना हुस्न चमकाओ,  कि हैराँ देख कर आलम हमें भी हो तुम्हें भी हो|| 

दौलत-ए-दुनिया नहीं जायेगी हरगिज़ तेरे साथ,  बाद तेरे सब यहीं ऐ  बे-ख़बर बट जाएगी 

ऐ वाए इंक़लाब ज़माने के जौर से दिल्ली ‘ज़फ़र’ के हाथ से पल में निकल गई 

इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल दुनिया है चल-चलाव का रस्ता सँभल के चल 

अपना दीवाना बनाया मुझे होता तूने क्यों ख़िरद्मन्द बनाया न बनाया होता

मर्ग ही सेहत है उस की मर्ग ही उस का इलाज इश्क़ का बीमार क्या जाने दवा क्या चीज़ है 

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