रस (Ras) हिंदी व्याकरण और हिंदी साहित्य में पढ़ाए जाने वाला एक महत्वपूर्ण विषय है। इसके चार अंग और ग्यारह भेद होते हैं। जैसा कि आचार्य भरत मुनि ने वर्णन किया है – विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः –
अर्थात् विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारिभाव के मेल से रस की उत्पति होती है। इसका मतलब यह है कि विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव से दयालु व्यक्ति के मन में उपस्थित ‘रति’ आदि स्थायी भाव ‘रस’ के स्वरूप में बदलता है। रस के बारे में विस्तार से जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें।
रस क्या हैं एवं परिभाषा (ras ki paribhasha)
रस का शाब्दिक अर्थ है – आनन्द। काव्य में जो आनन्द आता है, वहीं काव्य का रस है। काव्य में आने वाला आनन्द अर्थात् रस लौकिक न होकर अलौकिक होता है। रस काव्य की आत्मा है। अर्थात जिससे अस्वाद अथवा आनन्द प्राप्त हो वही रस है।
परिभाषा: रस अन्त:करण की वह शक्ति है, जिसके कारण इन्द्रियाँ अपना कार्य करती हैं, मन कल्पना करता है, स्वप्न की स्मृति रहती है। रस आनंद रूप है और यही आनंद विशाल अनुभव भी है। यही आनंद अन्य सभी अनुभवों व सुखों का रस भी है। आदमी इन्द्रियों पर संयम करता है, तो विषयों से अपने आप हट जाता है।
परंतु उन विषयों के प्रति लगाव नहीं छूटता। रस का प्रयोग सार तत्त्व के अर्थ में चरक, सुश्रुत में मिलता है। दूसरे अर्थ में कहा जाएं तो संसार रूपी सुख दुख व अन्य सभी कार्यों का अनुभव एवं चिन्तन करना ही रस होता है।रस क ई प्रकार के होते हैं आईए रस के प्रकार जानें।
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रस के प्रकार (ras ke prakar)
(1) श्रृंगार-रस
(2) हास्य रस
(3) करुण रस
(4) वीर रस
(5) भयानक रस
(6) रौद्र रस
(7) वीभत्स रस
(8) अद्भुत रस
(9) शान्त रस
(10) वात्सल्य रस
(11) भक्ति रस
रस के भाव या अंग
रस के मुख्यतः चार अंग या अवयव होते हैं।
- स्थायीभाव
- विभाव
- अनुभाव
- व्यभिचारी अथवा संचारी भाव।
स्थायी भाव
स्थायी भाव का अभिप्राय है- प्रधान भाव। रस की अवस्था तक पहुंचने वाले भाव को प्रधान भाव कहते हैं। स्थायी भाव काव्य या नाटक में शुरुआत से अंत तक होता है। स्थायी भावों की संख्या नौ स्वीकार की गयी है। स्थायी भाव ही रस का आधार है। एक रस के मूल में एक स्थायीभाव रहता है।
अतएव रसों की संख्या भी ‘नौ’ है, जिन्हें ‘नवरस’ कहा जाता है। मूलतः नौ रस ही माने जाते है। बाद के आचार्यों ने दो और भावों (वात्सल्य व भगवद् विषयक रति) को स्थायी भाव की मान्यता प्रदान की। इस प्रकार स्थायी भावों की संख्या ग्यारह तक पहुँच जाती है और जिससे रसों की संख्या भी ग्यारह है।
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रस के प्रकार एवं उदाहरण (Ras ke Prakar & Udaharan)
रस के ग्यारह भेद होते है- (1) श्रृंगार रस (2) हास्य रस (3) करुण रस (4) रौद्र रस (5) वीर रस (6) भयानक रस (7) वीभत्स रस (8) अद्भुत रस (9) शांत रस (10) वत्सल रस (11) भक्ति रस।
श्रृंगार रस (Shringar Ras)
श्रृंगार रस को रसो के राजा की उपाधि प्रदान की गयी है। इसके दो भेद बताये गये हैं
(i) संयोग श्रृंगार (वियोग श्रृंगार) : जब नायक-नायिका के मिलन की स्थिति की व्याख्या होती है वहाँ संयोग श्रृंगार रस होता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है।
एक पल मेरे प्रिया के दूग पलक,
थे उठे ऊपर, सहज नीचे गिरे।
चपलता ने इस विकंपित पुलक से,
दृढ़ किया मानो प्रणय सम्बन्ध था ॥shringar ras ka udaharan
सुमित्रानन्दन पन्त
(ii) वियोग श्रृंगार (विप्रलम्भ श्रृंगार): जहाँ नायक-नायिका के विरह-वियोग, वेदना की मनोदशा की व्याख्या हो, वहाँ वियोग श्रृंगार रस होता है। वियोग श्रृंगार के मुख्यतः चार भेद होते हैं: 1. पूर्वराग वियोग 2. मानजनित वियोग 3.प्रवास जनित वियोग 4. अभिशाप जनित वियोग, उदाहरण निम्नलिखित है।
अँखियाँ हरि दरसन की भूखीं।
सूरदास
कैसे रहें रूप-रस राँची ये बतियाँ सुन रूखीं।
अवधि गनत इकटक मग जोवत, तन ऐसी नहि भूखीं।
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हास्य रस (Hasya Ras)
किसी व्यक्ति की अनोखी विचित्र वेशभूषा, रूप, हाव-भाव को देखकर अथवा सुनकर जो हास्यभाव जाग्रत होता है, वही हास्य रस कहलाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है। हास्य कविता देंखे
सखि! बात सुनो इक मोहन की,
hasya ras ka udaharan
निकसी मटुकी सिर रीती ले कै।
पुनि बाँधि लयो सु नये नतना,
रु कहूँ-कहूँ बुन्द करी छल कै।
निकसी उहि गैल हुते जहाँ मोहन,
लीनी उतारि तबै चल कै।
पतुकी धरि स्याम सिखाय रहे,
उत ग्वारि हँसी मुख आँचल दै ॥
करुण रस (Karun Ras)
प्रिय वस्तु या व्यक्ति के समाप्त अथवा नाश कर देने वाला भाव होने पर हृदय में उत्पन्न शोक स्थायी भाव करुण रस के रूप में व्यक्त होता है। उदाहरण निम्नलिखित है।
अभी तो मुकुट बँधा था माथ,
karun ras ka udaharan
हुए कल ही हल्दी के हाथ।
खुले भी न थे लाज के बोल,
खिले थे चुम्बन शून्य कपोल।
हाय! रुक गया यहीं संसार,
बना सिन्दूर अनल अंगार ।
– सुमित्रानन्दन पन्त
वीर रस (Veer Ras)
युद्ध अथवा शौर्य पराक्रम वाले कार्यों में हृदय में जो उत्साह उत्पन्न होता है, उस रस को उत्साह रस कहते है। वीर रस के चार भेद बताये गये है: 1.युद्ध वीर 2.दान वीर 3.धर्म वीर 4. दया वीर। इसके उदाहरण निम्नलिखित है।
हे सारथे ! हैं द्रोण क्या, देवेन्द्र भी आकर अड़े,
veer ras ka udaharan
है खेल क्षत्रिय बालकों का व्यूह भेदन कर लड़े।
मैं सत्य कहता हूँ सखे! सुकुमार मत जानो मुझे,
यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा जानो मुझे।
भयानक रस (bhayanak Ras)
जब हमें भयावह वस्तु, दृश्य, जीव या व्यक्ति को देखने, सुनने या उसके स्मरण होने से भय नामक भाव प्रकट होता है तो उसे भयानक रस कहा जाता है। इसके उदाहरण निम्न है।
नभ ते झपटत बाज लखि, भूल्यो सकल प्रपंच।
कंपित तन व्याकुल नयन, लावक हिल्यौ न रंच ॥
रौद्र रस (Raudr Ras)
जिस स्थान पर अपने आचार्य की निन्दा, देश भक्ति का अपमान होता है, वहाँ पर शत्रु से प्रतिशोध की भावना ‘क्रोध’ स्थायी भाव के साथ उत्पन्न होकर रौद्र रस के रूप में व्यक्त होता है। उदाहरण निम्नलिखित है।
श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे ।
सब शोक अपना भूलकर करतल-युगल मलने लगे ॥
संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े।
करते हुए घोषणा वे हो गये उठकर खड़े ॥
उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उनका लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा ॥
मुख बाल-रवि सम लाल होकर ज्वाल-सा बोधित हुआ।
प्रलयार्थ उनके मिस वहाँ क्या काल ही क्रोधित हुआ ॥
-मैथिलीशरण गुप्त
वीभत्स रस (Vibhats Ras)
घृणित दृश्य को देखने-सुनने से मन में उठा नफरत का भाव विभाव-अनुभाव से तृप्त होकर वीभत्स रस की व्यञ्जना करता है। उदाहरण निम्न है।
रक्त-मांस के सड़े पंक से उमड़ रही है,
महाघोर दुर्गन्ध, रुद्ध हो उठती श्वासा।
तैर रहे गल अस्थि-खण्डशत, रुण्डमुण्डहत,
कुत्सित कृमि संकुल कर्दम में महानाश के॥
अद्भुत रस (Adbhut Ras)
जब हमें कोई अद्भुत वस्तु, व्यक्ति अथवा कार्य को देखकर आश्चर्य होता है, तब उस रस को अद्भुत रस कहा जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है।
एक अचम्भा देख्यौ रे भाई। ठाढ़ा सिंह चरावै गाई ॥
जल की मछली तरुबर ब्याई। पकड़ि बिलाई मुरगै खाई।।
– कबीर
शान्त रस (Shant Ras)
वैराग्य भावना के उत्पन्न होने अथवा संसार से असंतोष होने पर शान्त रस की क्रिया उत्पन्न होती है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है।
बुद्ध का संसार-त्याग-
क्या भाग रहा हूँ भार देख?
तू मेरी ओर निहार देख-
मैं त्याग चला निस्सार देख।
अटकेगा मेरा कौन काम।
ओ क्षणभंगुर भव ! राम-राम !
रूपाश्रय तेरा तरुण गात्र,
कह, कब तक है वह प्राण- मात्र,
बाहर-बाहर है टीमटाम।
ओ क्षणभंगुर भव! राम-राम !
वात्सल्य रस (Vatsaly Ras)
अधिकतर आचार्यों ने वात्सल्य रस को श्रृंगार रस के अन्तर्गत मान्यता प्रदान की है, परन्तु साहित्य में अब वात्सल्य रस को स्वतन्त्रता प्राप्त हो गयी है। जैसे-
यसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावैं दुलरावैं, जोइ-सोई कछु गावैं ।
जसुमति मन अभिलाष करैं।
कब मेरो लाल घुटुरुवन रेंगैं,
कब धरनी पग द्वैक घरै।
भक्ति रस (Bhakti Ras)
जब आराध्य देव के प्रति अथवा भगवान् के प्रति हम अनुराग, रति करने लगते हैं अर्थात् उनके भजन-कीर्तन में लीन हो जाते हैं तो ऐसी स्थिति में भक्ति रस उत्पन्न होता है। उदाहरण-
जाको हरि दृढ़ करि अंग कर्यो।
सोइ सुसील, पुनीत, वेद विद विद्या-गुननि भर्यो।
उतपति पांडु सुतन की करनी सुनि सतपंथ उर्यो ।
ते त्रैलोक्य पूज्य, पावन जस सुनि-सुन लोक तर्यो।
जो निज धरम बेद बोधित सो करत न कछु बिसर्यो ।
बिनु अवगुन कृकलासकूप मज्जित कर गहि उधर्यो।
निष्कर्ष: इस लेख मे हमने रस क्या है रस की परिभाषा एवं प्रकार या भेद को जाना, यह लेख आपके लिये कितना उपयोगी रहा, कमेंट मे हमे जरुर बतायें, साथ ही ऐसे नये-नये शिक्षा युक्त लेख के लिये हमे फालो करें।