जैसी संगत वैसी रंगत: क्या आपको पता है हमारे जीवन की शुरुआत कहानीयों से होती है। हम उन कहानियों की बात कर रहे है जो हमारी दादी मांं हमे बचपन मे सुनाती थी। आज हम इस लेख मे ऐसी ही कहाँनी पढने वाले है, जो हमारे बचपन की यादों को ताजा कर सकती है।
अगर आप इस कहानी (जैसी संगत वैसी रंगत) को गहराई से समझ लेते है तो आपको बहुत कुछ सीखने को मिलने वाला है। इसलिए इस कहानी को अंत तक जरूर पढे । आशा करता हूं कि आपको यह कहानी पसंद आएगी ।
जैसी संगत वैसी रंगत
एक बार एक जंगल में एक बहुत बड़ा पेड़ था और उस पेड़ पर एक बांझ ने घोंसला बना रखा था और उस पेड़ के ठीक नीचे ही एक मुर्गी ने भी एक घोंसला बनाया था और उस घोंसले में अंडे दे रखे थे एक दिन एक बाज का अंडा उन मुर्गियों के अंडों के बीच आकर गिर जाता है|
जब अंडे फूटते हैं तो उनमें से एक बांझ का बच्चा बाहर निकलता है और निकलने के बाद वो यह सोच कर बड़ा हुआ कि वह एक मुर्गी है वह हर एक सारे काम को करता जो बाकी की मुर्गीया करते हैं जैसे छोटे-छोटे कीड़ों को खाना जमीन पर अनाज के दानों को खोजना और मुर्गियों की तरफ पंख फड़फड़ाना वो वही सारे काम करता जो बाकी की मुर्गियां करती थी
एक दिन उस बांझ के बच्चे ने आकाश में भांज को उड़ते हुए देखा और मुर्गी से पूछा कि उस चिड़िया का क्या नाम है तो मुर्गी ने जवाब दिया वह एक बांझ है तो बाझ के बच्चे ने पूछा कि हम उसकी तरह ऊंचा क्यों नहीं उड़ सकते। मुर्गी ने बताया की क्योंकि हम मुर्गी हैं और वह एक बांझ है वह एक शानदार चिड़िया है लेकिन तुम उसकी तरह नहीं उड़ सकते क्योंकि तुम मुर्गी हो और बांझ का बच्चा अपनी सारी जिंदगी मुर्गियों के बीच रहकर मुर्गियों की तरह बिता देता है और उसे थोड़ा सा भी अंदाजा नहीं होता कि वह क्या है वह एक पक्षियों का राजा है।
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दोस्तों कई बार हम भी अपने अंदर के बांझ को मार देते हैं मुर्गियों के बीच रहकर मुर्गियों की तरह बन जाते हैं। हम भी उस बांझ के बच्चे की तरह एक गलत माहोल में प्रवेश कर जाते हैं और उन छोटी सोच वाली मुर्गियों के साथ रहते हैं जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं है और इसी की वजह से हम अपने अंदर के बांझ को कभी जगा ही नहीं पाते । इसलिए उन मुर्गियों के बीच से निकलो और बांझो के बीच जाओ जो तुमसे भी ज्यादा स्मार्ट है जो तुम से भी बड़ा सोचते हैं क्योंकि आपके बांझ होने का तब तक कोई मतलब नहीं है जब तक आप छोटी सोच वाली मुर्गियों के बीच अपना ज्यादा तर समए बिताते हो।
जैसी संगत वैसी रंगत कहानी की व्याख्या
अगर आप अपने कम नॉलेज वाले या कम स्मार्ट वाले लोगों के साथ रहते हो तो आप उनसे स्मार्ट तो रहोगे लेकिन आप की ग्रोथ कभी नहीं होगी अगर आप वही किसी ऐसे ग्रुप में हो जिनके पास आप से कहीं ज्यादा नॉलेज है और आप से कहीं ज्यादा स्मार्ट है भले ही आप उस ग्रुप में सबसे मूर्ख और सबसे कम knowledge वाले रहोगे लेकिन उस ग्रुप में जिसकी सबसे ज्यादा ग्रोथ होगी वह आप होंगे
इसलिए अगर आपको लगता है कि आप आप एक बांझ हो और आप एक बांझ की तरह ऊंचा उड़ सकते हो तो मुर्गियों के ग्रुप को छोड़ दो और उस ग्रुप को ज्वाइन करो जिसमें सभी बांझ की तरह हैं जिनकी ज्ञान,स्मार्टनेस और सोच आप से कहीं ज्यादा है।
हम इंसान पानी की तरह होते हैं जिस तरह पानी दूध में मिलता है दूध बन जाता है शराब में मिलता है शराब बन जाता है और नाली के पानी से मिलता है तो नाली का पानी बन जाता है मतलब जहां मिलोगे वही बन जाओगे जिसके साथ रहोगे वैसे ही बन जाओगे कौन लोग आपको बिगाड़गें और कौन लोग आपको बनाएंगे किसके साथ आप का नॉलेज बढ़ेगा और किसके साथ आप की ग्रोथ होगी, किसके साथ आपका फ्यूचर बिगड़ेगा यह सब चीजें आपके उस ग्रुप पर डिपेंड होती है जहाँ आप अपना ज्यादातर समय देते हो।
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दोस्तों आप लोगों ने अपने पेरेंट्स से यह तो जरूर सुना होगा कि तुम्हें तुम्हारी दोस्तों की बुरी आदत लग गई है और शायद यह सुनने के बाद आपको मजाक लगता होगा लेकिन यह बात सच है अगर आप किसी के साथ ज्यादा समय बिताते हो तो धीरे-धीरे आपको उनकी यादों की आदत लगने लगती है और आपको पता भी नहीं चलता।अच्छी संगत के साथ साथ अच्छी सोच भी होना बहुत जरूरी है अगर आप अच्छा सोचते हो तो आपके साथ अच्छा ही होगा अगर आप बुरा सोचते हो तो आपके साथ बुरा होना निश्चित है।
इसलिए अपने अंदर के बांझ को जगाना चाहते हो और बांझ की तरह ऊंचा उड़ना चाहते हो तो मुर्गियों के ग्रुप को छोड़कर बांझ के ग्रुप को ज्वाइन कर लो। याद रखना इंसान दो चेहरे लेकर घूमता है पहला जो उसका होता है और दूसरा चेहरा जो बुरी संगत का होता है। इसलिये आपको किसी भी दोस्त या ग्रूप मे जुडने से पहले लोगो को आंकना ना भूले। क्योकी जैसी संगत वैसी रंगत – अर्थात आप जैसे संगत मे रहेंगे वैसे ही बन जायेंगे।-
इस लेख मे हमने एक प्रेरणादायक कहानी पढी, जिसका शिर्षक जैसी संगत वैसी रंगत है। अर्थात आप जिस प्रकार के दोस्त, समाज, ग्रूप, या फिर कोई संस्था से जुडते है तो, आप वैसा ही बन जाते है। हमने यहाँ संथा शब्द का प्रयोग इसलिये किये क्योकी विद्यार्थी जीवन के विकाश मे संस्था या स्कूल भी अपना अहम भूमिका निभाते है।
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