Yoga Philosophy: सांख्य दर्शन की तरह योगदर्शन भी द्वैतवादी है। योग दर्शन का उद्देश्य मनुष्य को वह मार्ग दिखाना है जिसपर वो चलकर सम्पूर्ण जीवन का आनंद ले सकें अर्थात मोक्ष प्राप्त कर सके। इसके प्रणेता पतञ्जलि मुनि हैं।
योग दर्शन – Yoga Darshan
योग दर्शन क्या है: प्रकृति, मनुष्य और ईश्वर के अस्तित्व को मिलाकर मनुष्य जीवन को आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक विकाश के लिये दर्शन का एक बड़ा व्यावहारिक एवं मनोवैज्ञानिक रूप ही योगदर्शन है।
योग दर्शन की विशेषता –
- योग दर्शन व सांख्य दर्शन समान तंत्र है।
- योग दर्शन व सांख्य दर्शन आस्तिक दर्शन है, अर्थात दोनो वेदो की प्रमाणिकता को स्वीकारते है।
- योग व सांख्य दर्शन के अनुसार दुख तीन प्रकार के होते है। 1. आध्यात्मिक दु:ख 2. अधिभौतिक दु:ख 3. अधिदैविक दु:ख
- योग व सांख्य दर्शन के अनुसार मनुष्य के चरम लक्ष्य मोक्ष को स्वीकरते है।
चित्त क्या है ?
योग दर्शन (Yoga Philosophy) मे बुध्दि, मन और अहंकार को सयुक्त रुप मे चित्त की संज्ञा दी गई है। चित्त का अर्थ अंत:करण से है। Read- शाम्भवी महामुद्रा क्या है?
चित्त की 5 अवस्थायें है।
(1) क्षिप्त – क्षिप्त चित्त मे रजो गुण सक्रिय होते है, रजो गुण अर्थात – भोग, विलाव, दिखावे, इत्यादि । इस अवस्था मे ध्यान किसी एक वस्तु पर स्थिति या केंद्रित नही हो पाता है।
(2) विक्षिप्त – विक्षिप्त चित्त मे ध्यान किसी एक बिंदू पर अधिक समय तक केंद्रित नही हो पाता है, अर्थात विक्षिप्त चित्त मे ध्यान किसी वस्तु पर केंद्रित हो जाता है, लेकिन ज्यादा देर तक नही रुक पाता, यहा भी रजो गुण के कुछ अंश पाये जाते है।
(3) मूढ – मूढ चित्त मे मूलरुप से आलस्य, निद्रा, निष्क्रियता अधिक प्रभावी होते है।
(4) एकाग्र– एकाग्र चित्त मे ज्ञान का प्रकाश विद्यमान होता है। जिसके परिणाम स्वरुप चित्त किसी बिंदु पर अधिक ध्यान केंद्रित रखने मे सक्षम होता है। यह अवस्था योग के लिये सबसे उचित होता है।
(5) निरुध्द– यह चित्त कि पांचवी अवस्था है। इस अवस्था मे पूर्ण ध्यान केंद्रित रहता है। जिसके फलस्वरुप चित्त पूर्ण रुप से शांत रहता है।
चित्तवृत्ति क्या है ?
जब चित्त इंद्रियों द्वारा भौतिक सम्पर्क मे आता है तब वह भौतिकी का आकार ले लेता है। इसी आकार को वृत्त कहते है।
चित्तवृत्तिया पांच प्रकार की होती है। 1. प्रमाण 2. विपर्यय 3. विकल्प 4. निद्रा 5. स्मृति , ये सभी पांचो वृतियां मनुष्य जीवन को सुख-दुख एवं मोह का अनुभव कराती है। इन्ही वृतियों के कारण ही जीवन सांसारिक विषयो का अनुभव करता है।
इन्हे भी पढे-
(1) स्मृति क्या है?
(2) अनुलोम विलोम कैसे करे
(3) अवचेतन मन क्या है?
अष्टांग योग क्या है ?
शरीर, इंद्रिया और मन को शुध्द व पवित्र करने के लिये आठ प्रकार साधन बतायें गये है, इन्हे ही अष्टांग योग कहते है, जो निम्नलिखित प्रकार के होते है।
अष्टांग योग का नाम – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि – अष्टांग योग विस्तार से जाने
अष्टांग योग विस्तार से
- यम – बाहरी व आंतरिक इंदियों के संयम की क्रिया को यम कहते है। यह पांच प्रकार के है।
- अहिंसा
- सत्य
- अस्तेय
- ब्र्म्हचर्य
- अप्रिग्रह
- नियम – सदाचार का पालन ही नियम है। यह भी पांच प्रकार का होता है।
- शौच
- संतोष
- तप
- स्वाध्याय
- प्राणीधान
- आसन – शांतिपूर्वक विशेष मुद्रा मे बैठना ही आसन है। यह कई प्रकार का होता है।
- वज्रासन
- चक्रासन
- हलासन
- पदमासन (इत्यादि)
- प्राणायम – सांस के गति को नियत्रित करना एवं उन्हे एक क्रम मे लाना ही प्राणायाम है यह तीन क होता है।
- पूरक
- कुम्भक
- रेचक
- प्रत्याहार- इंदियों को बाहरी विषयों से हटाकर अंतर्मुखी करने का प्रयास ही प्रत्याहार है।
- धारणा- मन या चित्त को किसी अभिष्ट विषय पर केंद्रित करना ही धारणा है।
- ध्यान – अभीष्ट विषय का निरंतर ध्यान करना
- समाधि- समाधि ध्यान की पूर्ण अवस्था है। धारणा, ध्यान व समाधि योग के अंतरंग (आंतरिक) साधना माने जाते है।
इस लेख मे हमने योग दर्शन (Yoga Philosophy) को जाना, योग दर्शन के अष्टांग योग का पूर्ण पालन करके जीवन को सुखमय व आनंदमय बनाया जा सकता है, अगर आपको अष्टांग योग के विषय मे अधिक जानकारी चाहिये तो कमेंट मे जरुर बतायें, हम जल्द ही अष्टांग योग पर नये लेख लिखने का प्रयास करेंगे। अष्टांग योग