रामायण की 8 सर्वश्रेष्ठ चौपाईयां
मंगल भवन अमंगल हारी
द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी॥
रघुकुल रीत सदा चली आई
प्राण जाए पर वचन न जाई॥
हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता
कहहि सुनहि बहुविधि सब संता॥
हो, जाकी रही भावना जैसी
प्रभु मूरति देखी तिन तैसी॥
तव माया बस फिरउँ भुलाना।
ताते मैं नहिं प्रभु पहिचाना॥
कवन सो काज कठिन जग माहीं।
जो नहिं होइ तात तुम पाहीं॥
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