मिर्ज़ा गालिब की प्रसिध्द शायरी
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
मंज़िल मिलेगी भटक कर ही सही
गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नही
दिल-ए नादां तुझे हुआ क्या है आखिर इस दर्द की दवा क्या है
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे।।
उदासी पकड़ ही नहीं पाते लोग इतना संभाल कर मुस्कुराते है हम।
तुम मिलो या न मिलो नसीब की बात है
पर सुकून बहुत मिलता है तुम्हे अपना सोचकर।
जरा सी छेद क्या हुई मेरे जेब में सिक्कों से ज्यादा तो रिश्तेदार गिर गए।
यों ही उदास है दिल बेकरार थोड़ी है,
मुझे किसी का कोई इंतज़ार थोड़ी है।
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