Tulasi Katha: भक्तों आज के लेख में आप माता तुलसी की कहानी जानेंगे। आप इस लेख मे माता तुलसी के जन्म से लेकर पूजा विधान शुरु होने की प्रक्रिया तक की कहानी पढ़ेंगे। आप सभी भक्तों को यह जानना चाहिए कि वर्ष के बारह महीनों में कार्तिक मास का विशेष महत्व है। हिन्दू संस्कृति में भादव का महिना सबसे पूज्यनीय माना जाता है। क्योकि कार्तिक मास में ही माता तुलसी का जन्म हुआ था इसलिए यह पूरा माह मां तुलसी जी को समर्पित है।
मान्यता हैं कि तुलसी मां माता लक्ष्मी का ही स्वरूप है देखा जाए तो कार्तिक मास के हर त्योहार पर देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। तो आईए आपको विस्तार पूर्वक कार्तिक तुलसी कथा (Tulasi Katha) की कहानी बताते हैं। जो भी भक्त माता रानी की कहानी को विस्तार पूर्वक सुनेगा व पढ़ेगा उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होगी।
पौराणिक तुलसी कथा (Tulasi Katha)
पौराणिक काल में एक लड़की थी जिसका नाम वृंदा था उनका जन्म राक्षस कुल मे हुआ था। वह बहुत सुन्दर और सुशील थी। वृन्दा बचपन से ही भगवान विष्णु जी की भक्त थी वह पूजा पाठ बड़े ही प्रेम से किया करतीं थीं। जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में राजा जालन्धर से हुआ।
वृन्दा बडी ही पतिब्रता स्त्री थी। एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं, आप जब तक युद्ध में रहेगें मै पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए प्रार्थना करुंगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते मैं अपना संकल्प नही छोडूगीं। जालंधर के जाने के बाद वृन्दा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी उन्हें न जीत सके। सारे देवता जब हारने लगे तो भगवान विष्णु जी के पास गये।
सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि-वृंदा मेरी परम भक्त है मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता पर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते हैं। भगवान ने जलंधर का रूप रखा और वृंदा के महल में पहुंच गए जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत पूजा से उठ गई और उनके चरण छू लिए। जैसे ही उनका संकल्प टूटा,युद्ध में देवताओं ने जालंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया। उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पड़ा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है।
वृन्दा ने पूछा आप कौन हैं जिसका स्पर्श मैंने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गए पर वे कुछ बोल न सके, वृंदा सारी बात समझ गई। उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, भगवान तुंरत पत्थर के हो गए। सभी देवता हाहाकार करने लगे। लक्ष्मी जी रोने लगीं और प्रार्थना करने लगीं तब वृंदा जी ने भगवान का शाप विमोचन किया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गई।
जहां वृन्दा सती हुई थी उसी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा, आज से इनका नाम तुलसी है,और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा और मैं बिना तुलसी जी के भोग स्वीकार नहीं करुंगा। तब से तुलसी जी की पूजा सभी करने लगे और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।
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निष्कर्ष: इस लेख मे हमने माता तुलसी की कथा (Tulasi Katha) का वाचन किया, अगर आप ऐसे हि अन्य धार्मिक लेखों का वाचन करना चाहते है तो अनंत जीवन के टीम द्वारा लिखित अन्य लेखों को भी देंखे।