रहीम दास के 20 लोकप्रिय दोहे (अर्थ सहित) | Rahim Das ke Dohe aur Arth

Rahim Das ke Dohe: रहीम दास जी का पूरा नाम अब्दुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ाना है जिन्हे लोग रहीम दास जी के नाम से जानते थे। इनका जन्म भारत की राजधानी दिल्ली मे 17 दिसम्बर 1556 मे हुआ था। ये मध्यकालीन भारत के सबसे महान कवियों मे से एक थे। आज हम इस संग्रह मे, रहीम दास जी के प्रसिध्द दोहे (Rahim Das ke Dohe) व उनका अर्थ जानेंगे।

Rahim Das ke Dohe
रहीम के दोहे (rahim ke dohe)

रहीम दास के दोहे (Rahim Das ke Dohe)

जो रहिम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटें रहत भुजंग।

rahim ke dohe 1

रहिमन राहिल की भली, जो परसैं मन लाई।
परसत मन मैला करें, सो मैदा जली जाई।

rahim ke dohe 2

रहिमन देख बडेन को,लघु न दीजिए डारी।
जहां काम आवै सुई का वहां कर ई तलवारी।

rahim ke dohe 3

बिगडी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।

rahim ke dohe 4

क्षमा बडन को चाहिए, छोटन को उतपात।
कह रहिम हरि का घटऔ, जो मृग मारी लात।

rahim ke dohe 5

जो बडेन को लघु कहे, नही रहीम घटी जाहि।
गिरधर मुरली धर कहें, कछु दुःख मानत नाही।

rahim ke dohe 6

आवत गाली एक है, उलटत होई अनेक।
कहि रहीम मत उलटिये, वही एकई एक

rahim ke dohe 7

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए।
औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय।

rahim ke dohe 8

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रहीम के दोहे अर्थ सहित (rahim ke dohe with meaning)

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुरै, जुरै गांठ पड़ जाय।।

Rahim das ke dohe

अर्थ – रहिम दास जी कहते हैं कि, प्रेम रूपी धागे को नहीं तोडना चाहिए। क्योकी हमारा रिश्ता एक बंधन की तरह होता है। जिस प्रकार बंधन (धागा) टूट जाने के पश्चात दुबारा जोडने पर गाठ पड जाती है। उसी प्रकार रिश्ता टूट जाने के बाद पुन: जुडने पर कुछ न कुछ रिस्ते मे खट्टास हो ही जाता है।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।

rahim das ke dohe

अर्थ – रहिम दास जी कहते हैं कि आप बहुत बड़े आदमी हों और किसी की सहायता नहीं कर सकते तो आप खजूर के पेड़ जैसे हों, न तो आप किसी राही को छाया दे सकते हैं और ना ही फल ।

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करै, तो दुःख काहे को होय।

rahim das ji ke dohe

अर्थ – रहिम दास का कहना है कि जब दुःख पड़ता है तो सब भगवान को याद करते हैं और सुख में भूल जाते हैं। अगर हम सुख में ही भगवान की पूजा पाठ करें तो, दुख आयेंगा ही नहीं ।

वे रहिम नर धन्य है, पर उपकारी अंग।
बाटन वारे को लगे, ज्यों मेहंदी का रंग।

rahim das ke dohe

अर्थ – रहिम दास जी कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं जो सबका उपकार करते हैं। जिस प्रकार मेहंदी लगाने वाले के हाथ में मेहंदी का रंग लग जाती है। उसी प्रकार दुसरो की मदद करने वाले व्यक्ति का कार्य स्वय से सफल हो जाता है।

वुक्ष कबहु न फल भखै, नदी न संचय नीर।
पर मारथ के कारने, साधु धरा शरीर।

rahim das ke dohe

अर्थ –रहिम दास जी कहते हैं कि जिस प्रकार वुक्ष अपना फल नहीं खाते नदियां स्वयं अपना पानी नहीं पीती, उसी प्रकार सज्जन पुरुष दूसरों के उपकार के लिए शरीर धारण किया है।

रूठे सृजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिर फिर पोइए, टूटे मुक्ता हार।

rahim das ke dohe

अर्थ – रहिम दास जी कहते हैं कि, जिस प्रकार मोती का माला टूट जाने पर बार बार पिरोया जाता है।उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति के रूठ जाने पर बार बार मना लेना चाहिए।

रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।

rahim das ke dohe

अर्थ – रहिम दास जी कहते हैं कि जिस प्रकार से मोती की चमक खो जाने से किसी काम की नहीं होती, और चूने का पानी सूख जाने से किसी काम का नहीं होता,उसी प्रकार मनुष्य की इज्जत चली जाती है तो समाज में उसकी कोई प्रतिष्ठा नहीं रह जाती।

रहीमदास जी के लोकप्रिय दोहे (rahim das ji ke dohe)

दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं॥

समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात॥

rahim das ji ke dohe

रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार,
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार॥

rahim das ji ke dohe

लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार जा
हनि मारे सीस पै, ताही की तलवार॥

क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात |
कह रहीम हरी का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।

जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं।
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।

rahim das ji ke dohe

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।

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