ललही छठ (Lalahi Chhath) का त्योहार भादव महिने के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है इसे हल षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। सन्तान की दीर्घायु व कुशलता की कामना के लिए इस दिन महिलाएं व्रत रखती है। आईए जानते हैं ललही छठ की पूजा विधि एवं महत्व
ललही छ्ठ क्यों मनाई जाती है?: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भादव माह के षष्ठी तिथि के दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था, इसलिए उनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में गांव की सुहागिन महिलाएं एक साथ महुआ या पीपल के पेड़ के नीचे पूजा पाठ करके एक दूसरे को सिन्दूर लगाकर व पैर छूकर आशीर्वाद लेती है और एक विशेष प्रकार का गीत गाती है जिसे कजरी कहा जाता है।
ललही छठ की पूजा ( Lalahi Chhath Ki Pooja)
Lalahi Chhath Pooja: ललही छठ के दिन महिलाएं पीपल पेड़ के नीचे गड्ढा खोदकर कुशा गाड़ देती है और उसके चारों तरफ तालाब की तरह बनाकर लीप देती है। अब वही जगह पर गांव की सारी सुहागिन महिलाएं इकट्ठा होकर ललही माता की पूजा-पाठ करतीं हैं। इस वर्ष ललही पूजन 5 सितम्बर 2023 को है।
इस व्रत में हल से जोतकर उगाएं गये अनाज व फल को नही चढ़ाया जाता है और न ही खाया जाता है। पौराणिक मान्यताओ के अनुसार ललही माता अपने भाई से गुस्सा थी इस कारण महुआ के पेड़ के नीचे बैठी थी और अपने भाईयों के खेत का अन्न न खाकर महुआ ही खाया करती थी। इसलिए ललही छठ के दिन पूजा करने से पहले खेत में नहीं जाना चाहिए और आपके पास कुछ न हो तो महुआ और भैंस की दही चढ़ाना चाहिए, जिससे ललही माता खुश होती हैं, और आपके परिवार में खुशियां ही खुशियां देती है।
ललही पूजा की सामग्री – Lalahi Chhath Pooja Samagri
- अगरबत्ती
- पसाढी का चावल
- सिन्दूर एक पांव
- करेमुआ
- मिट्टी का कसोरा
- महुआ,का फूल
- महुआ का पत्ता
- पंचमेवा
- फल,केला सेब अनार
- भैस की दही,घी
- दीपक
- हल्दी
- सोलह श्रृंगार
- जोड़ा साड़ी इत्यादि।
ललही माता की पूजा विधि – Lalahi Chhath Mata ki Pooja
सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर अपने नित्य काम करके स्नान करें और पूजा का सामान इकट्ठा करके थाली सजा ले। मिट्टी का कसोरा धूल लें, फिर उसको हल्दी से रंग ले और बड़ी थाली में एक एक करके रखें, फिर उसमें महुआ थोड़ा-थोड़ा रखें, और सब कसोरा में महुआ के उपर दही डालें, और फल काटकर रखें। बाकी बचे अन्य सामान को दूसरी थाली में रखकर पूजा स्थान पर लेकर जाएं और वहां विधि विधान से पूजन करें,
नोट- मिट्टी का कसोरा न होने पर महुआ की पत्तियां इस्तेमाल किया जाता है और अपनी श्रद्धा अनुसार महुआ दही न रखकर पनचमेवा से थाली सजाई जाती है। खास बात यह कि जीतने बेटा रहते हैं उतने बरहे चढ़ाएं जातें हैं। जैसे दो बेटे हैं तो छत्तीस मिट्टी का कसोरा सजाएंगे, दो बेटों के लिए और एक ललही माता के लिए।
इस व्रत के दिन घर या बाहर कहीं भी दीवाल पर भैंस के गोबर से छठ माता का चित्र बनाते हैं, और फिर गणेश व माता गौरा की पूजा करते हैं। महिलाएं घर में ही तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं और वहां पर बैठकर पूजा अर्चना करती हैं तथा हल षष्ठी की कथा सुनती हैं. उसके बाद माता ललही माता को प्रणाम करके पूजा समाप्त करती हैं। अब आपकी ललही छ्ठ पूजा (Lalahi Chhath Pooja) समाप्त हुई।
ललही माता से सम्बंधित अन्य मान्यताये
इस व्रत में वही चीजें खाई जाती हैं जो तालाब या मैदान में पैदा होती हैं. जैसे तिन्नी का चावल, केर्मुआ का साग, पसाढी के चावल खाकर आदि
हल छठ व्रत में हल से जुती हुई अनाज और सब्जियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
इस व्रत में गाय के किसी भी उत्पाद जैसे दूध, दही, गोबर आदि का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. हल छठ व्रत में भैंस का दूध, दही और घी का उपयोग किया जा सकता है।
सम्बंधित प्रश्न व उत्तर
ललही छठ किसका त्योहार है?
ललही छठ मे किसकी पूजा की जाती है?
ललही छठ (Lalahi Chhath) की पूजा सामग्री क्या है?
यहाँ दी गई जानकारी मान्यताओं पर आधारित है। यहां यह बताना जरूरी है कि अनन्त जीवन किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।