कबीर दास जी भारत के महान व प्रसिध्द कवियों मे से एक है। इनका जन्म भारत के उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले मे हुआ था। कबीर दास जी को कबीर साहब, संत कबीर और कई अन्य नामो से जाना जाता है।
हम इस लेख मे कबीर दास जी के प्रसिध्द दोहे (Kabir Das ke Dohe in Hindi) पढेंगे, साथ ही उनका अर्थ भी जानेंगे – पढे- कबीर दास का जीवन परिचय
कबीर दास के 20 प्रसिध्द दोहे – Kabir Das ke Prasidhd Dohe
जाति न पूछो साधु की, पूंछ लिजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।
पोथी पढि पढि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
Kabir Das ke Dohe in Hindi
ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़ें सो पंडित होय।
धीरे धीरे रे मन मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आएं फल होय
जाति न पूछो साधु की, पूंछ लिजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
बोलीं एक अमोल है,जो कोई बोलैं जान।
हिये तराजू तौल के,तब मुख बाहर आन।
निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना निर्मल देह सुभाय।
जब गुण को ग्राहक मिले,तब गुण लाख बिचाय।
Kabir Das ke Dohe in Hindi
जब गुण को ग्राहक नहीं,तब कौड़ी बदले जाय।
हाड़ जले ज्यों लकडी, केस जले ज्यों घास।
सब तन जलता देख कर,भया कबिरा उदास।
आपने इन्हे पढा क्या – रहीमदास जी के 20 प्रसिध्द दोहे
कबिर तन पंछी भया, जहां मन तहा उड़ जाय।
जो जैसी संगति करै सो तैसा ही फल पाय।
माया मरी न मन मरा,मरि मरि गया शरीर।
आशा तृष्णा न मरी, यो कह गए संत कबीर।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपने, मुझसे बुरा न कोय।
Kabir Das ke Dohe in Hindi
झूठे को झूठा मिले,दूना बढ़े स्नेह।
झूठे को सांचा मिलें,तो ही दूर नेह
कबीर दास के 10 दोहे – Kabir Das ke 10 Dohe in Hindi
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।।
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।।
दुख में सुमिरन सब करै, सुख में करै न कोय।
sant kabir ke dohe
जो सुख में सुमिरन करै, तो दुख काहे को होय।।
कस्तूरी कुंडली बसै, मिरग ढूंढई बन माहि।
Kabir Das ke Dohe in Hindi
ऐसे घटि घटि राम है, दुनिया देखे नहि।।
साच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके ह्रदय साच है,ताके ह्रदय आप।।
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार सार को गहि रहें,थोथा देई उडाय।
कल करे सो आज कर,आज करे सो अब।
kabir ji ke dohe
पल में परलै होयगी,बहुरि करोगे कब।।
रूखा सूखा खाई के, ठंडा पानी पीय।
देखि पराई चूपडी,मत ललचावै जीव।।
कबीर साहेब के प्रसिध्द दोहे – Kabir ke Dohe in Hindi pdf
कबीर दास भारत के महान कवियों मे से एक है। आज हम पेज पर कबीर दास के दोहे को पढेंगे, साथ ही उसे डाउनलोड भी कर सकते है।
आवत गाली एक है,उलटत होई अनेक।
Kabir Das ke Dohe in Hindi
कहि रहिम मत उलटिए, वहीं एक की एक
कबीर दास जी के दोहे अर्थ सहित – Kabir das ji ke done in Hindi
गुरु गोविंद दोउ खड़े काको लागूं पाय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंन्द दियो बताय ।।
अर्थ- कबीर दास जी पहले पंक्ति के माध्यम से पूछते है कि जब हमारे सामने ईश्वर और गुरु दोनों साथ खड़े हो तो आप सर्वप्रथम किसके चरणस्पर्श करेगे। दूसरी पक्ति मे कबीर दास जी उत्तर देते है और कहते है कि गुरु ने अपने ज्ञान के द्वारा हमे ईश्वर से मिलने का रास्ता बताया है। इसलिए गुरु की महिमा ईश्वर से भी ऊपर है । अर्थात हमे सर्वप्र्थम गुरु का चरणस्पर्श करना चाहिए ।
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
अर्थ- जो प्रयत्न या मेहनत करते हैं, वे कुछ न कुछ हाशिल कर लेते हैं जैसे कोई गोताखोर जब गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है। लेकिन कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और अंत: उन्हे कुछ नहीं मिलता।
जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं ।
प्रेम गली अति सांकरी जामें दो न समाहीं ॥
अर्थ- कबीर दास जी कहते है कि जब तक मन में अहंकार था तब तक ईश्वर का दर्शन नही हुआ. जब यह अहंकार (घमण्ड) समाप्त हुआ तभी प्रभु मिले। अर्थात जब ईश्वर का दर्शन होता है तब अहम स्वत: नष्ट हो जाता है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ- इस दोहे के माध्यम से कबीरदास जी कहना चाहते है कि बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीरदास जी कहते है कि यदि कोई प्रेम के ढाई अक्षर अच्छी तरह पढ़ ले वही सच्चा ज्ञानी है।
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
अर्थ- इस दोहे के माध्यम से कबीरदास जी कहते है कि ना तो अधिक बोलना अच्छा है और ना ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है। जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है। इसलिये इनके बीच संतुलन का होना अनिवार्य है।
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
Kabir Das ke Dohe in Hindi
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
अर्थ- इस दोहे के माध्यम से कबीरदास जी कहते है कि इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक (अच्छी व जरुरत की वस्तुये) को बचा लेंगे और निरर्थक (खराब वस्तुये) को उड़ा देंगे।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
अर्थ- इस दोहे के माध्यम से कबीरदास जी कहते है कि जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। लेकिन जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।
It is superb
Thank you
जी 🙂 धन्यवाद