10+ अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविता । Atal bihari Vajpayee ki Kavita

अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद हुआ था इनके पिताजी का नाम पंडित कृष्ण बिहारी बाजपेई था जोकी मध्य प्रदेश के ग्वालियर सियासत में अध्यापक थे और माता का नाम कृष्णा देवी था जो एक गृहणी (घरेलू) महिला थी। अटल बिहारी वाजपेयी की जीवनी पढे Atal bihari Vajpayee ki Kavita

 Atal bihari Vajpayee ki Kavita
Atal bihari Vajpayee ki Kavita

अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनैतिक क्षेत्र के साथ-साथ हिंदी साहित्य मे भी अपना भरपूर्ण योगदान दिया। उनके द्वारा रचित कविताये अधिकतर राष्ट्रहित के लिये होती थी, ज्यादातर वो अपने कविताओ के माध्यम से राष्ट्र के युवा को आगे बढने की प्रेरणादेते थे, “कदम मिलाकर चलना होगा” (Kadam Milakar Chalana Hoga Kavita‌‌) जैसी प्रमुख कविताये आप को अंदर से झकझोर देंगी।

कदम मिलाकर चलना होगा कविता

बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
दुनिया का इतिहास पूछता,
रोम कहाँ, यूनान कहाँ?
घर-घर में शुभ अग्नि जलाता।
वह उन्नत ईरान कहाँ है?
दीप बुझे पश्चिमी गगन के,
व्याप्त हुआ बर्बर अंधियारा,
किन्तु चीर कर तम की छाती,
चमका हिन्दुस्तान हमारा।
शत-शत आघातों को सहकर,
जीवित हिन्दुस्तान हमारा।
जग के मस्तक पर रोली सा,
शोभित हिन्दुस्तान हमारा।

कवि :- अटल बिहारी वाजपेयी
कदम मिलाकर चलना होगा कविता

दुनिया का इतिहास पूछता – कविता

दुनिया का इतिहास पूछता,
रोम कहाँ, यूनान कहाँ?
घर-घर में शुभ अग्नि जलाता।
वह उन्नत ईरान कहाँ है?
दीप बुझे पश्चिमी गगन के,
व्याप्त हुआ बर्बर अंधियारा,
किन्तु चीर कर तम की छाती,
चमका हिन्दुस्तान हमारा।
शत-शत आघातों को सहकर,
जीवित हिन्दुस्तान हमारा।
जग के मस्तक पर रोली सा,
शोभित हिन्दुस्तान हमारा।
कवि :- अटल बिहारी वाजपेयी

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Atal bihari Vajpayee ki Kavita

मैं अखिल विश्व का गुरू महान

मैं अखिल विश्व का गुरू महान,
देता विद्या का अमर दान,
मैंने दिखलाया मुक्ति मार्ग
मैंने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान।
मेरे वेदों का ज्ञान अमर,
मेरे वेदों की ज्योति प्रखर
मानव के मन का अंधकार
क्या कभी सामने सका ठहर?
मेरा स्वर नभ में घहर-घहर,
सागर के जल में छहर-छहर
इस कोने से उस कोने तक
कर सकता जगती सौरभ भय।

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बेटी पर कविता
मां पर दो लाईन शायरी
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कविता संग्रह

आओ फिर से दिया जलाए-कविता

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मौत से ठन गई- कविता

ठन गई!
मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई।

Atal bihari Vajpayee ki Kavita

इस लेख मे हमने अटल बिहारी वाजपेयी (Atal bihari Vajpayee ki Kavita) के द्वारा रचित, कुछ चुनिंदा कविताओ को पढा, यह काव्य संग्रह आप के जीवन के लिये कितना लाभप्रद रहा, कमेंट मे अपना सुझाव अवश्य दे। साथ ही हमारे साथ जुडे- Join Now

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