Niti ke Dohe: चार चरणो वाले छंद को दोहा कहते है। हमारे देश मे ऐसे कई महान कवियों जैसे – रहीमदास, कबीरदास, तुलसीदास आदि ने जन्म लिया है। जिन्होने अपनी दोहावली से समाज सुधारने मे अहम भूमिका निभाई।
आज हम इस लेख मे सभी महान कवियों के प्रसिध्द दोहावली अर्थात नीति के दोहे ( Niti ke Dohe) का संग्रह किया है। जो आपके जीवन को खुशियो से भर देंगी। और आपके विचार को सकारात्मकता प्रदान करेंगी।
नीति के दोहे – Niti ke Dohe
जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं।
अर्थ- रहीमदास जी कहते हैं कि किसी भी बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन कम नहीं होता, क्योंकि भगवान कृष्ण जिन्होने गिरिधर (पर्वत) को उठाया था उन्हे मुरलीधर भी कहाँ जाता है। तो उनकी महिमा कम नहीं होती।
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।
रहिमन धागा प्रेम का, मत टोरो चटकाय।
अर्थ- रहीमदास जी कहते है की प्रेम का नाता नाजुक होता हैं, इसे तोड़ना उचित नहीं होता। अगर ये धागा (नाता) एक बार टूट जाता हैं तो फिर इसे मिलाना मुश्किल होता हैं, और यदि मिल भी जाये तो उस रिश्ते मे कही न कही दरार रह जाती हैं।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि |
अर्थ- रहीमदास जी कहते है की किसी को बडा या छोटा नही आकना चाहिये। क्योंकि जहां छोटे का काम होता है वहां बड़ा कुछ नहीं कर सकता। जैसे कि सुई के काम को तलवार नहीं कर सकती।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवार |
रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार |
अर्थ- रहीमदास जी कहते है की यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठ जाये तो उसे तो उसे मना लेना चाहिए, क्योंकि जब कीमती मोतियों की माला टूट जाती है तो उसे फिर से पिरोया जाता है। उसी प्रकार हमे अपने कीमती रिश्ते को भी मना लेना चाहिये।
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार |
समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात |
अर्थ- रहीमदास जी कहते हैं कि उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगता है। झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाता है. सदा किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इसलिए दुःख के समय पछताना व्यर्थ है |
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात |
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान
अर्थ – तुलसीदास जी कहते है की धर्म, दया भावना से उत्पन्न होती और अभिमान तो केवल पाप को ही जन्म देता है, मनुष्य के शरीर में जब तक प्राण हैं तब तक उसे दया भावना कभी नहीं छोड़नी चाहिए।
तुलसी दया न छोडिये जब तक घट में प्राण।
प्रसिध्द नीति के दोहे – Famous Niti ke Dohe
तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक|
अर्थ – तुलसीदास जी कहते हैं, किसी विपत्ति यानि किसी बड़ी परेशानी के समय आपको ये सात गुण बचायेंगे: आपका ज्ञान, विनम्रता, बुद्धि,, साहस, आपके अच्छे कर्म, सच बोलने की आदत और ईश्वर पर विश्वास|
साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक||
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
अर्थ- रहीमदास जी कहते हैं कि वृक्ष कभी भी अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और सरोवर भी अपना पानी स्वयं नहीं पीता है। इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो हैं जो दूसरों की भलाई सोचते हैं।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय |
अर्थ – रहीमदास जी कहते है की, मनुष्य को सोच-समझ कर व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा|
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय |
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग |
बाँटन वारे को लगे, ज्यो मेहंदी को रंग |
अर्थ – रहीमदास जी ने कहा की वे लोग धन्य हैं, जो हमेशा उपकार करता हैं | क्योकी जिस प्रकार मेहंदी बाटने वाले के शरीर पर भी मेहंदी का रंग लग जाता हैं | उसी तरह परोपकर करने वाले व्यक्ति का शरीर व मन भी सुशोभित हो जाता हैं |
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय |
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय |
अर्थ- रहीमदास जी कहते है की दुःख में तो सभी लोग ईश्वर को याद करते हैं, परंतु सुख में कोई नहीं करता, अगर सुख में भी ईश्वर को याद कर लिया जाय तो दुःख होगा ही नही |
रहिमन वे नर मर गये, जे कछु मांगन जाहि |
उतने पाहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि |
अर्थ- रहीमदास जी कहते है की, जो व्यक्ति किसी से कुछ मांगने के लिये जाता हैं वो तो मरे हैं। परन्तु उससे पहले ही वे लोग मर जाते हैं जिनके मुह से नहीं निकलता हैं |
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर |
जब नाइके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर |
अर्थ- रहीमदास जी कहते है की जब बुरे दीन आये तो चुप ही बैठना चाहिये, क्योकी जब अच्छे दिन आते हैं तब बात बनते देर नहीं लगती।
नीति के दोहे विद्यार्थियों के लिये – niti ke dohe class 3,4,5,6,7,8
बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय |
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय |
अर्थ- अपने अंदर के अहंकार को निकालकर या त्याग कर हमे ऐसी बात करनी चाहिए जिसे सुनकर दुसरों को ख़ुशी हो |
गुरु गोविंद दोउ खड़े काको लागूं पाय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंन्द दियो बताय ।।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि जब हमारे सामने गुरु और ईश्वर दोनों साथ खड़े है तो आप किसके चरणस्पर्श करेगे। गुरु ने अपने ज्ञान माध्यम से ही हमे ईश्वर का बोध कराया है। इसलिए गुरु की महिमा ईश्वर से भी ऊपर है । अतः हमे सर्वप्रथम गुरु का चरणस्पर्श करना चाहिए ।
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
अर्थ- कबीरदास जी कहते है कि न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है। जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है।
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
अर्थ- कबीरदास जी कहते है कि इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो अन्न (अच्छे लोग) को बचा लेंगे और पत्थर (बुरे लोगो) को निकाल देंगे या बाहर कर देंगे।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
अर्थ- कबीरदास जी कहते है कि जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है। अर्थात समाज मे या दुसरो मे बुराईया देखने से पहले स्वयं के अंदर झाक लेना चाहिये ।