लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, इस कविता के लेखक हरिवंश राय बच्चन जी है। जिनका जन्म 27 नवम्बर 1907 मे उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (प्रयागराज) जिले मे हुआ था। इन्होने छोटी उम्र से ही कवितायें व कहानिया लिखना शुरु कर दिये थे। ये पेशे से एक छायावादी कवि, अध्यापक व लेखक थे।
नमस्कार पाठको ! इस लेख मे हम हरिवंश राय बच्चन द्वारा लिखित प्रसिध्द कविता – लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती (Laharo Se Dar Ke Nauka Par Nahi Hoti) कविता व कविता की व्याख्या पढेंगे।
लहरों से डरकर नौका पार नही होती – कविता & व्याख्या
कवि – हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai bachchan)
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ॥
नन्ही चिटी जब दाना लेकर चलती है, चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है, चढ़ कर गिरना गिरकर चढ़ना न अखरता है।
मेहनत उसकी बेकार हर बार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होत
व्याख्या :- इस कविता में मानव जीवन के कठिन परिस्थितियों में साहस और धैर्य के साथ कार्य करने की प्रेरणा दी गई है। कठिन परिस्थितियों से डरकर हमारी जीवन रूपी नौका पार नहीं हो सकती उस परिस्थिति में हमे मन लगाकर व दृण निश्चय होकर प्रयत्न करना चाहिए ।
जिस प्रकार एक एक छोटा चीटी दाना लेकर दिवाल पर चढने की कोशिश कर रही, लेकिन बार बार फिसलने के कारण वह निचे गिर जाती है फिर भी उनके मन में आशा है कि मैं चढ़ जाऊगी। और वह बार-बार प्रयत्न करती रही। और अंतत: उसकी मेहनत बेकार नहीं गयी और वह चढ़ ही गयी। इसलिये कवि ने कहाँ है कोशिश (प्रयत्न) करने वालो की हार नही होती। पढे- पुष्प की अभिलाषा कविता
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है, जा जा कर खाली हाथ लौटकर कर आता है।
मिलाते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में। बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुठ्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती। कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
व्याख्या:- इस पंक्ति में कवि ने बताया है कि इस संसार रूपी सागर में सभी व्यक्ति डुबकियां लगाते हैं। यानी सभी अपना कर्म करते हैं। लेकिन सब को उनके कर्म के अनुसार फल नही मिल पाता है। अर्थात उन्हे जल्दी सफलता नहीं मिलती। लेकिन हर बार व अधुरे नही होते, अब की बार उनके पास एक और तजुर्बा होता है। और वही कार्य बार- बार करने से उत्साह और बढ़ता है। और अंतत: वह सफल हो जाता है। ये कविता भी पढे – Poem: चल नहीं पाता, पैरो में ज़ंजीर लेके, हुआ भी जन्म मेरा , कैसी तक़दीर लेके।
असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो, क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो,
जब तक न सफल हो नींद चैन को त्यागो तुम, संघर्ष का मैदान छोड़, मत भागो तुम।
कुछ किए बिना जै जै कार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
व्याख्या :- इस पंक्ति मे कवि यह बताना चाह रहा है की यदि कोई व्यक्ति किसी काम में असफल हो रहा है तो उन्हें हार नहीं माननी चाहिए। उन्हें एक चुनौती समझ कर स्वीकार कर लेना चाहिए । और जिस कमी के कारण वह असफल हो रहा उसे अपने अंदर देख कर सुधार लेना चाहिये, और पुन: कोशिश करनी चाहिये। एवं तब तक कोशिश करनी चाहिये, जब तक कामयाब न हो जाये, भले ही इसके लिये तुम्हे अपनी नींद, चैन त्यागनी पडे, क्योंकि कुछ किए बिना नाम नहीं होता । Read – दिनकर जी की प्रसिध्द कविताये
हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख कविताये
हरिवंश राय बच्चन जी ने अनेकों कविताये, कहानिया लिखी है। अधिकांश ये अपनी कवितायों मे हिंदी व अवधि भाषा प्रयोग किये है। हरिवंश राय बच्चन द्वारा लिखित कुछ निम्नलिखित कवितायें।
- मधुशाला
- मधुबाला
- सूत की माला
- धार के इधर उधर
- आरती और अंगारे
- उभरते प्रतिमानो के रुप
- दो चट्टाने
- प्रणय पत्रिका
- लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
- बहुत दीन बीते (आदि)
Koshish karne walo ki haar nahi hoti
Ye rachna shree Sohan lal dwivedi ji ki hai
जी नही, यह कविता हरिवंशराय जी न लिखी है।