भगवान विष्णु जी को हिंदू धर्म के सभी देवताओ मे सबसे उच्च स्थान प्राप्त है मान्यता है कि भगवान विष्णु ही जगत के पालनहार एवं उध्दारकर्ता है। आज हम इस लेख मे विष्णु स्तोत्र अर्थात भगवान विष्णु की महिमा और गुणों की प्रशंसा करने वाले श्लोक पढेंगे।
इस श्लोक मे भगवान विष्णु के अद्वैत रूप, सृष्टि के संभालने, सभी लोकों के पालने और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के उत्थान का वर्णन किया गया है। इस पाठ को करने से भक्त का चित्त शांत होता है और उसे आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति होती है।
इस लेख मे हम हरिस्तोत्रम्ज का सम्पूर्ण श्लोक (Shri hari stotram) पढेंगे। तथा विष्णु स्तोत्र पाठ का व्याख्या भी जानेंगे।- जय श्री कृष्णा। jagajjalapalam Chalatkanthamalam in hindi
विष्णु स्तोत्र पाठ हिंदी में (Shri hari stotram Hindi)
जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं, शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं
नभोनीलकायं दुरावारमायं, सुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं ||
सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं, जगत्सन्निवासं शतादित्यभासं
गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं, हसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहं ||
रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं, जलान्तर्विहारं धराभारहारं
चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं, ध्रुतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं ||
जराजन्महीनं परानन्दपीनं, समाधानलीनं सदैवानवीनं
जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं, त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं ||
कृताम्नायगानं खगाधीशयानं, विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानं
स्वभक्तानुकूलं जगद्व्रुक्षमूलं, निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहं ||
समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं, जगद्विम्बलेशं ह्रुदाकाशदेशं
सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं, सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं ||
सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं, गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठं
सदा युद्धधीरं महावीरवीरं, महाम्भोधितीरं भजेऽहं भजेऽहं ||
रमावामभागं तलानग्रनागं, कृताधीनयागं गतारागरागं
मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं, गुणौधैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं ||
फलश्रुति
इदं यस्तु नित्यं समाधाय चित्तं, पठेदष्टकं कण्ठहारम् मुरारे:
स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकं, जराजन्मशोकं पुनर्विन्दते नो||
shri hari stotram lyrics in hindi
Shri hari stotram hindi। हरिस्तोत्रम्ज व्याख्या (विष्णु स्तोत्र)
जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं, शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं
व्याख्या
नभोनीलकायं दुरावारमायं, सुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं ||
जगज्जालपालं- जो विश्व के पालनहार है, रक्षक है
चलत्कण्ठमालं- जिनके गले (कंठ) मे चकदार माला सुसोभित है।
शरच्चन्द्रभालं – जिनका शरद ऋतु के चंद्रमा समान मस्त्क है
महादैत्यकालं- जो असुरो व दैत्यो के काल है।
नभोनीलकायं- जिनकी काया नभ के नीले रंग के समान है
दुरावारमायं- जिनके पास भ्रम की अजेय शक्तिया है
सुपद्मासहायम् – जो देवी लक्ष्मी के साथ रहते है
भजेऽहं भजेऽहं – मै उनको भजता हू, उनकी प्रार्थना करता हू
सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं, जगत्सन्निवासं शतादित्यभासं
व्याख्या
गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं, हसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहं ||
सदाम्भोधिवासं – जो हमेशा समुद्र मे रहते है।
गलत्पुष्पहासं- जिनकी फूलो जैसी मुस्कान है
जगत्सन्निवासं – जो दुनिया मे हर जगह विराजमान है
शतादित्यभासं- जिनके पास सौ सौर्यो की चमक है
गदाचक्रशस्त्रं- जिनके पास शस्त्र के रुप मे गदा व चक्र है
लसत्पीतवस्त्रं- जो पीले वस्त्र पहनते है
हसच्चारुवक्त्रं – जिनके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान है
रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं, जलान्तर्विहारं धराभारहारं
व्याख्या
चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं, ध्रुतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं ||
रमाकण्ठहारं- जो लक्ष्मी के गले मे माला है
श्रुतिव्रातसारं- जो वेदो के सार है
जलान्तर्विहारं- जो पानी के अंदर रहते है
धराभारहारं– जो पृथ्वी का हार हरते है
चिदानन्दरूपं – जिनके पास एक सदा प्रशन्न वाला रुप है
मनोज्ञस्वरूपं- जिनका रुप मन को आकर्षित करता है
ध्रुतानेकरूपं – जिन्होने कई रुप धरे है
भजेऽहं भजेऽहं – हम उनको भजते है
पढे- महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ
जराजन्महीनं परानन्दपीनं, समाधानलीनं सदैवानवीनं
व्याख्या
जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं, त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं ||
जराजन्महीनं– जो जन्म और मृत्यु से मुक्त हो
परानन्दपीनं– जो अनंत सुख से भरे है।
समाधानलीनं– जो हमेशा शांति मे रुचि रखते है। जिनका मन स्थिर रहता है
सदैवानवीनं– जो सदैव नवीन प्रतीत होते है।
जगज्जन्महेतुं– जो संसार के जन्म का कारण है।
सुरानीककेतुं– जो देव सेना के रक्षक है।
त्रिलोकैकसेतुं – जो तीनो लोको के बीच सेतु है।
भजेऽहं भजेऽहं – हम उनको भजते है।
कृताम्नायगानं खगाधीशयानं, विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानं
व्याखा
स्वभक्तानुकूलं जगद्व्रुक्षमूलं, निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहं ||
कृताम्नायगानं– जो वेदो के गायक है
खगाधीशयानं– जो पक्षियो के राजा पर सवारी करते है
विमुक्तेर्निदानं – जो मुक्ति प्रदान करते है
हरारातिमानं– जो सुश्मनो का मान रखते है
स्वभक्तानुकूलं – जो अपने भक्तो के अनुकूल है
जगद्व्रुक्षमूलं– जो जगत वृक्ष के जड है
निरस्तार्तशूलं – जो सभी दुखो का निवारण करते है
भजेऽहं भजेऽहं– हम उनको भजते है।
पढे- गायत्रीमंत्र का अर्थ जाने
समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं, जगद्विम्बलेशं ह्रुदाकाशदेशं
व्याख्या
सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं, सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं ||
समस्तामरेशं – जो सभी देवो के स्वामी है
द्विरेफाभकेशं– जिनके केश का रंग काला है
जगद्विम्बलेशं – जो पृथ्वी को अपना एक कण मानते है
ह्रुदाकाशदेशं– जिनके पास आकाश जैसा विशाल शरीर है।
सदा दिव्यदेहं– जिनका शरीर दिव्य है
विमुक्ताखिलेहं– जो सभी प्रकार के मोह से मुक्त है
सुवैकुण्ठगेहं – जो बैकुंठ (स्वर्ग) को अपना घर समझते है
भजेऽहं भजेऽहं– हम उनको भजते है
सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं, गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठं
व्याख्या
सदा युद्धधीरं महावीरवीरं, महाम्भोधितीरं भजेऽहं भजेऽहं ||
सुरालिबलिष्ठं- जो सब देवो मे बलवान है
त्रिलोकीवरिष्ठं– तीनो लोगो मे वरिष्ठ है
गुरूणां गरिष्ठं– जो भारी लोगो मे सबसे भारी है
स्वरूपैकनिष्ठं– जो एक ही रुप मे उजागर होते है
सदा युद्धधीरं– जो सदा लडाइयो मे विजेता होते है
महावीरवीरं– जो वीरो मे महावीर है
महाम्भोधितीरं – जो आपको समुद्र रुपी जीवन से पार ले जाते है
भजेऽहं भजेऽहं– हम उनको भजते है
पढे- धर्मो रक्षति रक्षित: का अर्थ
रमावामभागं तलानग्रनागं, कृताधीनयागं गतारागरागं
व्याख्या
मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं, गुणौधैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं ||
रमावामभागं – जो माता लक्ष्मी को अपनी बाई ओर रखते है
तलानग्रनागं– जो नागदेवता पर विराजमान रहते है
कृताधीनयागं– जो भक्ति,पूजा से प्राप्त किये जा सकते है
गतारागरागं– जो सभी सांसारिक मोह से दूर है, जिनकी भक्ति से सारा मोह-माया छूट जाता है
मुनीन्द्रैः सुगीतं– जो महान संतो के लिये शुध्द संगीत है
सुरैः संपरीतं– जिन्हे सभी देवी-देवता द्वारा सेवा दी जाती है।
गुणौधैरतीतं– जो सभी गुणो से भरे है।
भजेऽहं भजेऽहं-हम उनको भजते है
इदं यस्तु नित्यं समाधाय चित्तं, पठेदष्टकं कण्ठहारम् मुरारे:
फलश्रुति व्याख्या
स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकं, जराजन्मशोकं पुनर्विन्दते नो
अर्थात– यह पाठ जो मुरारी के कंठ की माला के समान है, जो भी इसे सच्चे मन से पढेग, वो निसंदेह सभी प्रकार के दुखो. शोको और जन्म मरण से मुक्त हो जायेगा। वो बैकुंठ धाम को प्राप्त होगा, उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। – हनुमान जी के 108 नाम Shri hari stotram
Shri hari stotram Image Hindi
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भगवान विष्णु से जुडे महत्वपूर्ण तथ्य
भगवान विष्णु हिन्दू सनातन धर्म में एक महत्वपूर्ण देवता हैं। वे त्रिमूर्ति (ब्र्म्हा, विष्णु, महेश) के एक अंग भी हैं और परमात्मा के एक रूप माने जाते हैं। मान्यता है की भगवान विष्णु जगत के पालनकार है तथा समय-समय पर धर्म की रक्षा हेतु अवतार लेते है.
- विष्णु भगवान हिन्दू धर्म के देवताओं में सबसे ऊँचे स्थान पर हैं। वे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के पालनहार और निर्माता हैं भगवान विष्णु जी को हिंदू धर्म्न मे परम पिता परमेश्वर के रुप पूजा जा जाता है।
- भगवान विष्णु जी को हरि, नारायण, परम पिता, ओंकार, परमेश्वर आदि नाम से जाना जाता है।
- मान्यता है कि भगवान विष्णु जी धर्म की स्थापना करने एवं अधर्म का नाश करने के लिये धरती पर अवतार लेते हैं उनके प्रमुख अवतार जैसे- भगवान राम और भगवान कृष्ण आदि
- विष्णु भगवान का चतुर्भुज रूप सबसे प्रसिद्ध है। उनके चार हाथ अनंत शक्ति और सामर्थ्य का प्रतीक हैं। उनके हाथ में शंख, चक्र, गदा और पद्म होता हैं। जो अद्भुद एवं दिव्य होता है।
- विष्णु भगवान जी की अर्धांगिनी माता लक्ष्मी जी है जिन्हे धन, समृद्धि, सौभाग्य और श्रेष्ठता का प्रतीक माना जाता है।
- विष्णु भगवान सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं और सभी जीवों के हृदय में निवास करते हैं। एवं जगत का पालन करते हैं। उन्हें ओंकार, परमात्मा, ईश्वर, नारायण आदि नामों से भी जाना जाता है।
इस लेख मे हमने जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं (Shri hari stotram) के सम्पूर्ण श्लोक का अर्थ जाना, यह लेख आप को कैसा लगा, कमेंट मे अपना सुझाव देना ना भूले, हमसे जुडे