shri ram janki vivah: भक्तों, रामायण हर भारतवासी के लिए आस्था का विषय है। इसमें भगवान श्री राम और माता सीता की अनुपम लीला को लिखा गया है।रामायण हम सबकी आस्था और श्रद्धा को समेटे हुए है। मनुष्य रूप में भगवान की अनुपम लीला आज भी हमें सत्यता और कर्तव्यनिष्ठा का पाठ पढ़ाती है।
आज के लेख में हम जानेंगे रामायण की पौराणिक कथा सीता स्वयंवर की अर्थात माता सीता व प्रभु श्रीराम का विवाह कैसे हुआ था? खासकर वर्तमान मे यह विचार इसलिये भी अधिक प्रसिध्द हो गया है क्योकि दिवाली आने वाली है जिसके कुछ सप्ताह पूर्व ही गांव, शहर, कस्बों आदि मे रामलीला कराया जाता है।
श्री राम जानकी विवाह (shri ram janki vivah)
सीता स्वयंवर का मंच सज़ा हुआ था। इस स्वयंवर की शर्त यह थी कि जो महादेव शिव के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा लेगा, वहीं माता सीता का वर बनने योग्य होगा।
दरअसल, भगवान विश्वकर्मा द्वारा बनाए गए इस शिव धनुष को परशुराम जी ने महाराज जनक के पूर्वजों को धरोहर के रूप में दिया था। स्वयंवर में बैठे बड़े-बड़े शूरवीर इस धनुष को हिला तक नहीं पा रहें थे, वहीं माता सीता बाल्यकाल से ही आसानी से उठा लेती थीं।वहीं माता सीता बाल्यकाल से ही आसानी से उठा लेती थीं।
ऐसा देख महाराज जनक समझ चुके थे कि सीता कोई आम कन्या नहीं हैं, इसलिए इनका विवाह भी किसी दिव्य पुरुष से ही होगा। इस संकल्प के बाद सही समय आने पर सीता स्वयंवर का आयोजन होता है। इस स्वयंवर में एक से बढ़ कर एक योद्धा शामिल होते हैं। प्रभु श्री राम अपने गुरु वशिष्ठ और अनुज लक्ष्मण के साथ इस समारोह का हिस्सा बने। समारोह शुरू होने पर बड़े-बड़े योद्धाओं ने शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की कोशिश की। पर प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर, उनसे ये धनुष हिला भी नहीं।
यह देख राजा जनक बड़े दुखी हुए और सोचने लगे क्या इस संसार में ऐसा कोई भी नहीं जो सीता के योग्य हो। यह सोच कर उन्होंने कहा कि क्या सीता कुंवारी रह जाएगी। यह सुन कर सभा में मौजूद लक्ष्मण क्रोधित हो उठे। उन्होंने अपने बड़े भाई श्री राम से धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने का आग्रह किया, जिसे श्री राम ने अस्वीकार कर दिया। बाद में श्री राम के गुरु वशिष्ठ उन्हें समारोह में हिस्सा लेने का आदेश देते हैं। गुरु का आदेश सुन कर श्री राम धनुष के निकट जाते हैं।
श्री राम का आकर्षक व्यक्तित्व देख सभी का ध्यान उन पर जाता है। सबसे पहले श्री राम ने धनुष को प्रणाम किया। इसके बाद एक ही झटके में श्री राम ने धनुष उठा लिया। पर जैसे ही उन्होंने प्रत्यंचा चढ़ाई, धनुष दो हिस्सों में टूट जाता है। शिव धनुष टूटने के बाद भी श्री राम विनम्र भाव से खड़े थे। इस प्रकार सीता स्वयंवर की शर्त पूरी होती है। चारों ओर से श्री राम पर पुष्प की वर्षा होती है। फिर सीता जी वरमाला श्री राम को पहनातीं हैं और माता सीता का स्वयंवर सम्पन्न होता है।
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लेखक की ओर से: जैसा की आप सभी जानते हैं। दिवाली आने वाली है इसके 2-3 सप्ताह पूर्व ही गांव में रामलीला का आयोजन कराया जाता है उस रामलीला में गांव के बच्चे ही राम, लक्ष्मण, माता सीता व अन्य महत्वपूर्ण रोल निभाते हैं, फिर भी श्रध्दा भाव से देखने वाले दर्शकों के लिए उन्हीं पात्रों में भगवान श्रीराम व माता सीता का दर्शन हो जाता हैं, जो व्यक्तियों के आस्था को दर्शाती है। यह रामलीला पूरे 10 दिनों तक चलती है जिनमे प्रत्येक दिन रामायण के अनुसार, प्रभु श्रीराम के जीवन मे घटित घटित घटनाओंं को दिखाया जाता है।
इस लेख मे हमने माता सीता व प्रभु राम के विवाह या स्वयंम्बर (shri ram janki vivah) की पौराणिक कहानी देखी। आस्था से सम्बंधित अन्य लेख देखने हेतु साइट पर उपस्थित अन्य लेखों को अवश्य देंखे।