हरिकृष्ण देवसरे जी ने इस कविता मे वर्तमान समय के महत्व को अपने कविता के बताया है। उन्होने बताया है की समय बहुत ही मूल्यवान है । इसलिये हमे समय का सदा ही सदउपयोग करना चाहिये।
कविता मे ही आप इस पक्ति को पढेंगे (लाख यत्न करने पर भी. हाथ न उसके आया) अर्थात एक बार समय बीत जाने पर आप लाख कोशिश करले, लेकिन समय को वापिस नही लाया जा सकता। हरिकृष्ण देवसरे द्वारा लिखित यह कविता समय के मूल्यों को समझाता है।
समय बहुत ही मूल्यवान है कविता
चला गया जो समय लौट कर, कभी नहीं फिर आता,
सदा समय को खोने वाला, कर मल मल कर पछताता।
जिसने इसे न माना इसको, जिसने भी ठुकराया
लाख यत्न करने पर भी. हाथ न उसके आया।।
हों जाता है एक घड़ी के लिए जन्म भर रोना
समय बहुत ही मूल्यवान है, व्यर्थ कभी मत खोना।।
धन खो जाता श्रम करने से, फिर मनुष्य है पाता
स्वास्थ बिगड़ जाने पर, उपचारों से है बन जाता।
विद्या खो जाती फिर भी, पढ़ने से आ जाती
लेकिन खो जाने से मिलती, नहीं समय की जाती।
जीवन भर भटकों, छानो,दूनिया का कोना कोना
समय बहुत ही मूल्यवान है, व्यर्थ कभी मत खोना।।
रहती थी बापू की कटि में, हरदम घड़ी लटकती
उन्हें एक क्षण की बरबादी, थी अत्यधिक खटकती।
बच्चो तुम भी उसी भांति, पल पल से लाभ उठाओ,
व्यर्थ न जाएं कभी एक क्षण, ऐसा नियम बनाओं।
गांठ बांध लो,नहीं पड़ेगा कभी तुम्हे दुःख ढोना
समय बहुत ही मूल्यवान है, व्यर्थ कभी मत खोना।।
लेखक – हरिकृष्ण देवसरे
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- कविता – नर हो न निराश, करो मन को
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हरिकृष्ण देवसरे का परिचय
हरिकृष्ण देवसरे का जन्म ९ मार्च 1938 मे भारत के मध्यप्रदेश राज्य के सतना जिले मे हुआ था। यह एक कविताकार, लेखक, नाटककार आदि थे। इन्होने अपने साहित्यिक जीवन मे 300 से अधिक पुस्तको को लिखा है।
हरिकृष्ण देवसरे की प्रमुख कृतियाँ
- डाकू का बेटा,
- आल्हा-ऊदल,
- महात्मा गांधी,
- भगत सिंह,
- उड़ती तश्तरियाँ,
- आओ चंदा के देश चलें,
- घना जंगल डॉट काम
- मील के पहले पत्थर,
- दूसरे ग्रहों के गुप्तचर (आदि)