हिंदू धर्म के अनुसार जन्म और मरण के बंधन से मुक्त होना ही मोक्ष है, हिंदू धर्म के अलावा बौध्द धर्म, जैन धर्म तथा सिंख धर्म, के ग्रंथों मे भी मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख किया गया है। तथा सभी धर्मों मे मोक्ष प्राप्ति के अलग-अलग मार्ग बतायें गये है। लेख मे हम जानेंगे की मोक्ष क्या है ? एवं मोक्ष कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? यहाँ हम सभी धर्मों के द्वारा बतायें गयें मोक्ष प्राप्ति के मार्ग को वर्णित करेंगे।
मोक्ष को अंग्रेजी मे Salvation कहते है। एंव मोक्ष को विमुक्ति, मुक्ति और विमोक्ष भी कहाँ जाता है। शास्त्रो के अनुसार जीवन के चार उद्देश्य है, 1. धर्म, 2. अर्थ, 3. काम, 4. मोक्ष । इनमे से सबसे आखिरी मोक्ष प्राप्ति है, जिसकी प्राप्ति हर मनुष्य करना चाहता है। क्योकि यही जीवन का आखिरी चरण है।
मोक्ष क्या है ? – What is Moksha in Hindi
मोक्ष का अर्थ दुखों से निवारण एवं सुखों के प्राप्ति से है। भारतीय दर्शनों मे मोक्ष के अलग-अलग अर्थ व मार्ग बतायें गये है, लेकिन सभी दर्शनों मे मोक्ष के व्याख्या मे दुख निवारण का संदर्भ पाया गया है।
भारत के सभी दार्शनों ने संसार के दुःखमय स्वभाव को स्वीकारा है एवं इससे मुक्ति के लिये कर्ममार्ग व ज्ञानमार्ग का रास्ता दिखाया है। मोक्ष इस प्रकार के जीवन का अंतिम चरण है। इसलिये इसे जीवन के आखिरी चरण के रूप में स्वीकारा गया है।
मोक्ष का वास्तिवक अर्थ जानने के लिये सभी दर्शनों मे परिभाषित मोक्ष का अर्थ जानना होगा, क्योकि सभी भारतीय दर्शनों मे मोक्ष अलग-अलग परिभाषित किया गया है एवं इसे प्राप्त करने का भिन्न-भिन्न मार्ग दर्शाया गया है।-जाने- शिव के 108 नाम
सभी दर्शनों के अनुसार मोक्ष क्या है ? – Moksh kya hai
- हिंदू धर्म – हिंदू धर्म (सनातन धर्म) मे मोक्ष प्राप्ति के लिये 4 चरण बतायें गये है। कर्मयोग, भक्तियोग, सांख्ययोग एवं ज्ञानयोग, इन चारो की सहायता से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
- सांख्य दर्शन – सांख्य दर्शन के अनुसार मनुष्य तीन प्रकार के दुखों ( अध्यात्मिक, आधिदैविक, एवं आधिभौतिक) से घीरा रहता है इन दुखों का सम्पूर्ण निवारण ही मुक्ति या मोक्ष है।
- न्याय दर्शन- न्यायदर्शन के अनुसार सभी दुःखों का नाश ही मुक्ति या मोक्ष है।
- जैन दर्शन – जैन दर्शन एक नास्तिक व अनिश्वरवादी दर्शन है, फिर भी जैन दर्शन ने मोक्ष के सत्ता को स्वीकारा है, तथा इसे प्राप्त करने के लिये मार्ग बताया है। जैन दर्शन का मुख्य लक्ष्य “संसारिक बंधन से मुक्ति पाना है।
- वेदांत – वेदान्त के अनुसार पूर्ण आत्मज्ञान द्वारा मोह-माया से दूर होकर ब्रह्मस्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना ही मुक्ति या मोक्ष है ।
इन धर्मों के अनुसार परिभाषित मोक्ष को समान्यत: यह माना जा सकता है की, जीवन से सभी दुखों की समाप्ति व जन्म-मरण के चक्र की समाप्ति ही मोक्ष है। एवं मोक्ष प्राप्ति का अर्थ केवल दुखों से निवारण ही नही बल्कि असीम आनंद प्राप्त करना भी शामिल है। – “नम म्योहो रेंगे क्यो” का अर्थ
मोक्ष का अर्थ – Meaning of Moksha
सभी धर्मों मे मोक्ष के अलग-अलग अर्थ बतायें गये है, लेकिन सबसे प्राचिन सनातन धर्म के अनुसार सम्पूर्ण दुख, मोह-माया एवं जन्म व मरण के चक्र से मुक्त होना ही मोक्ष है। भगवद्गगीता के अनुसार इन चार (कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग, व सांख्य्योग) से मोक्ष की प्राप्ति किया जा सकता है। Read- विष्णु जी के 108 नाम
हिंदू धर्म के अनुसार जीवन धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष का संगम है, तथा जीवन का अंतिम चरण मोक्ष प्राप्ति है, लेकिन मनुष्य अर्थ व काम मे फसकर मृत्यु के समीप पहुंच जाता है। जिससे मनुष्य मोक्ष प्राप्ति के मार्ग से भटक जाता है।
मोक्ष प्राप्ति के उपाय
मोक्ष प्राप्ति के कई उपाय व मार्ग है, क्योकी सभी धर्मों ने अलग-अलग मार्ग बतलाये है। सबसे प्राचीन धर्म (सनातन धर्म) के अनुसार – मोक्ष निम्न तरीकों से प्राप्त किया जा सकता है।
- भक्ति
- योग
- ज्ञान
- ध्यान
- तंत्र
- कर्म
- आचरण
इन तरीको से मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है। – साम दाम दण्ड भेद का अर्थ
नोट- यह लेख इंटरनेट पर उपलब्ध अन्य साइटो, एप्प, सोसल मिडीया व हमारे विचारोंं का संग्रह है, मोक्ष शब्द एक दिव्य शब्द के भाति है, अत: इसके अर्थ की पूर्ण गारंटी लेना सही नही, हमारा सुझाव है, इसे सामान्य जानकारी समझे, एवं किसी विशेष उपयोग से पूर्व जांच कर ले।
अगर आप के मन मे मोक्ष से जुडा कोई विचार है, जिसे आप लोगो के साथ साझा करना चाहते है तो कमेंट मे जरुर बतायें-
If a man told OUM / AUM at the last time of his life before his death with other conditions , then he will be free from birth and death forever , ie , he will be moksha or mukti and his Attma / soul will be enter in nirakar Bramva , ie , in Lord Shiv .
Lord Shri Krishna says in the SHRIMAT BHAGAVAD GITA in Chapter 8 , Verse 13
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् |
य: प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् || 13||
BG 8 .13 : One who departs from the body while remembering Me , the Supreme Personality and chanting the syllable Oum , will attain the supreme goal .
The other conditions knows by read in the SHRIMAT BHAGAVAD GITA as follows :-
TIME :- Lord Shri Krishna says in the SHRIMAT BHAGAVAD GITA in Chapter 8 , Verse 24
अग्निर्ज्योतिरह: शुक्ल: षण्मासा उत्तरायणम् |
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जना: || 24||
Those who know the Supreme Brahman and who depart from this world , during the six months of the sun’s northern course , the bright fortnight of the moon and the bright part of the day , attain the supreme destination .
Lord Shri Krishna says in the SHRIMAD BHAGAVAD GITA that apart from practicing all those things that bring moksha and possessing all the qualities :- the time of departure of the Atma / soul from the body also plays an important role in the soul attaining Brahman , ie , moksha or mukti .
He says that when the departure happens :- in the “ uttarayan ”, shukla paksha , during the day time , burning fire ( Deep / Candal / Jagga kunda ) , lighted day then the person will attain the Brahman , ie , he will be moksha or mukti .
Uttarāyaṇa ( उत्तरायण ) , or Uttarayan :- the six month period between Makar Sankranti around ( January 14 ) and Karka Sankranti around ( July 14 ) , when the Sun travels towards north on the celestial sphere .
Shukla paksha :- The bright half of the month starts from the next day of the new moon and goes on till the full moon day .
PURITY :- the Atma / soul will be fully pure .
Lord Shri Krishna says in the SHRIMAd BHAGAVAD GITA in Chapter 18 , Verse 66 .
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज |
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: || 66||
BG 18 .66 : Abandon all varieties of dharmas and simply surrender unto me alone . I shall liberate you from all sinful reactions ; do not fear .
Place :-
Lord Shri Krishna says in the SHRIMAd BHAGAVAD GITA in Chapter 6, Verse 11 .
शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मन: |
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम् || 11||
BG 6 .11 : To practice Yoga , one should make an āsan ( seat ) in a sanctified place , by placing kuśh grass , tiger skin and a cloth , one over the other . The āsan should be neither too high nor too low .
12 places of Jyotirlinga and 4 places of dham .
Jyotirlingas :- ( 1 ) Somnath Jyotirlinga , Veraval , Gujarat , ( 2 ) Mallikarjuna Jyotirlinga , Srisailam , Andhra Pradesh , ( 3 ) Mahakaleshwar Jyotirlinga , Ujjain , Madhya Pradesh , ( 4 ) Omkareshwar Jyotirlinga , Island in the Narmada River, Omkareshwar , Madhya Pradesh , ( 5 ) Kedarnath Jyotirlinga , Kedarnath , Uttarakhand , ( 6 ) Bhimashankar Jyotirlinga , Bhimashankar , Maharashtra , ( 7 ) Vishwanath Jyotirlinga , Varanasi , Uttar Pradesh , ( 8 ) Trimbakeshwar Jyotirlinga , Trimbakeshwar , Near Nashik , Maharashtra , ( 9 ) Baidyanath Jyotirlinga , Deoghar , Jharkhand , ( 10 ) Nageshvara Jyotirlinga , Jageshwar , Uttarakhand , ( 11 ) Rameshwar Jyotirlinga , Rameswaram , Tamil Nadu , ( 12 ) Ghushneshwar Jyotirlinga , Aurangabad, Maharashtra .
Char Dhams :- ( 1 ) Badrinath Dham , Badrinath , Uttarakhand , ( 2 ) Dwarka Dham , Dwarka / Okha , Gujarat , ( 3 ) Jagathnath Puri Dham , Puri , Orissa and ( 4 ) Rameswaram Dham , Rameswaram , Tamil Nadu .
POSITION OF EYES :- The eyes should be seen towards bhrumadhya chakra / anga chakra .
Lord Shri Krishna says in the SHRIMAD BHAGAVAD GITA in Chapter 8, Verse 10
प्रयाणकाले मनसाचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव |
भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक् स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् || 10||
One who at the time of death , with unmoving mind attained by the practice of Yoga , fixes the prāṇ ( life airs ) between the eyebrows , and steadily remembers the Divine Lord with great devotion , certainly attains Him .
Chakra :- Sahasrara Chakra .
Crown Chakra ( Samsara or Sahasrara ) सहस्रार चक्र : सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है। यदि व्यक्ति यम, नियम का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है। ऐसे व्यक्ति को संसार , संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब नहीं रहता है। मंत्र : ॐ I
कैसे जाग्रत करें : मूलाधार से होते हुए ही सहस्रार तक पहुंचा जा सकता है। लगातार ध्यान करते रहने से यह चक्र जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त कर लेता है। प्रभाव : शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत का संग्रह है। यही मोक्ष का द्वार है।
Ashram dharma :- Sannyas .
Lord Shri Krishna says in the SHRIMAD BHAGAVAD GITA in Chapter 9 , Verse 28
शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनै: |
संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि || 28||
BG 9.28 : By dedicating all your works to Me , you will be freed from the bondage of good and bad results . With your mind attached to Me through renunciation , you will be liberated and will reach Me .
Kaivalya Moksha can only be given by SHIV / Mahadev and no other Gods . Though as per Shastra , The Pancha Brahmas are known for their ability to give Moksha they can give four general Moksha except for Shiva who can also give Kaivalya Moksha .