बेटी पर निबंध: भारतीय समाज बेटीयों को परायी क्यू समझता है ? आखिर उनके साथ इतना भेदभाव क्यू?

बेटी पर निबंध: भारतीय समाज मे जातिय व लैंगिक भेदभाव का प्रचलन हजारों वर्ष पुराना है। भारत मे अब भी ऐसे कई गांव व कस्बे है जहाँ जातिय व लैंगिक भेदभाव अपने चरम सीमा पर है। लेकिन बडे शहरो मे ऐसा भेदभाव कम देखने को मिलता है।

भारत के गाव हो या शहर हर जगह भेदभाव का थोडा अंश जरुर देखने को मिलता है। लेकिन शिक्षा ने इसे काफी हद तक कम कर दिया है। लेकिन अब भी कई ऐसे गांव है जहाँ बेटियों को शिक्षा नही दिया जाता, मात्र उन्हे घरेलू कामो के लिये पला पोषा जाता है। हम इस लेख मे बेटियों पर हो रहे अत्याचार के विषय मे जानेंगे, आखिर समाज बेटियों का सम्मान क्यू नही करता ।

बेटी पर निबंध

बेटी पर निबंध – Beti par Nibandh

बेटी पर निबंध: बेटियां संपूर्ण विश्व की निर्माणकर्ता, वृद्धि करता व जगत जननी है वह बेटियां ही है जो सभी रिश्तो को एक धागे में पीरों के रखती हैं इसलिए लोगों को उनका सम्मान और रक्षा करना चाहिए। आज भी लोग बेटियों के प्रतिभा और कौशल को बिना पहचाने बेटियों को बोझ समझ लेते हैं और इसी कारण उनके जन्म होने से पहले ही उनकी हत्या कर दी जाती है। बिटिया कोई बोझ नहीं होती बस यह हमारे समाज की गंदी सोच है जो लोग बेटियों को बोझ मानते हैं। उन्हे स्वयं एक मां ने जन्म दिया है जो किसी की बेटी थी।

बेटियों के प्रति समाज की रूढ़िबद्ध धारणा

यह समाज की पुरानी रूढ़िबद्ध धारणा है की बेटियां चूल्हा चौका के सिवा कुछ नहीं कर सकती, बेटियां तो हमारे सेवा के लिए बनी है और यह घर में ही रहे, इनका बाहर की दुनिया से कोई वास्ता नही। यही रूढ़िबद्ध धारणा सदियों से चली आ रही हैं। जिसके कारण समाज मे अनेको समस्याएं और जुर्म होते हैं । जैसे- भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा, बेरोजगारी आदि।

इन्हीं रूढ़िबद्ध धारणा के वजह से लड़के और लड़कियों में भेदभाव किया जाता है। इस भेदभाव की शुरुआत बचपन से ही परिवारो शुरु हो जाता है। जैसे- पहनावे में, खिलौनों में और स्वभाव के जरिए, पहनावे में मां बाप बोलते हैं तू तो लड़का है तू तो जींस ही पहनेगा और तू तो लड़की है तू तो फ्रॉक या सलवार सूट ही पहनेगी। खिलौनों में लड़कों को बैट बल्ला जैसी खिलौने दिए जाते हैं और लड़कियों को गुड़िया या चूल्हा बर्तन आदि जैसे खिलौने दिए जाते हैं।

स्वभाव में परिवार के लोग बचपन से ही बोलते हैं तू तो लड़का है लड़के कभी रोते नहीं रोने का काम तो लड़कियों का है। यही छोटी-छोटी बातें लड़कों और लड़कियों में भेदभाव बचपन से ही उत्पन्न करता है और बचपन से ही उनके दिमाग में ये बैठा दिया जाता है और लड़की भी यही सोचती है कि मैं तो लड़की हूं मुझे तो यही करना है और लड़के भी लड़कियों का इज्जत नहीं कर पाते क्योंकि बचपन से तो वह वही सुनते आते हैं की लड़कियां हमारे सेवा के लिए बनी है।

इन्ही सब कारणो की वजह से बेरोजगारी अधिक होती जा रही है क्योंकि बचपन से ही उनकी कामों को भी बांट दिया जाता है कि तू लड़की है तू तो टीचर बनेगी, घर का काम करेगी और तू लड़का है तू तो आर्मी में या क्रिकेटर बनेगा इस तरह कामों में भी भेदभाव किया जाता है।

इसलिए जो लड़के डांस, गाना गाने, खाना बनाने में ज्यादा अच्छे होते है और इस क्षेत्र में वो ज्यादा अच्छा काम कर सकते हैं लेकिन जब वह सब कार्य करते हैं तो उनका मजाक बनाया जाता है इस तरह उन्हें वह काम करने से रोक दिया जाता है और लड़कियों का भी वही हाल है जो वह करना चाहती हैं उन्हें नहीं करने दिया जाता भले वह उस क्षेत्र में अच्छा काम कर जाएं। पढे- बेटी पर कविता

बेटियो की प्रतिभा

आज भी भारतीय समाज बेटियों को घर से बाहर नहीं जाने देते जिससे लड़कियों का प्रतिभा और कौशल चार दीवारों में ही दफन हो जाता है। लड़कियां क्या नहीं कर सकती। इसी रूढ़िबद्ध धारणा को झारखंड की एक गरीब घर की आदिवासी लड़की लक्ष्मी लकारा (27 वर्षीय) ने उत्तर भारत प्रथम महिला ट्रैन इंजन चालक बनकर तोड़ा है।

आज तक लोग सोचते थे की ट्रेन तो केवल पुरुष ही चला सकते हैं लक्ष्मी लकार ने ये धारणा तोड़ दिया। उन्होंने दिखा दिया कि लड़कियां भी वह काम कर सकती हैं जो लड़के करते हैं।

बेटियो को आगे बढने मे मदद करें

अब हमे रूढ़िबद्ध धारणाओ को बदलना होगा और भ्रूण हत्या जैसी अपमान जनक कार्य करना बंद करवाने मे समाज को जागरुप करना होगा। और अपनी बेटियों को शिक्षित कर उन्हें भी अवसर देना होगा और उन्हें भी शिक्षा की ओर प्रोत्साहित करना होगा।

अगर हम बेटियो को बेटो के बराबर की छूट दे तो, बेटियां बोझ नहीं वरदान दिखाई देंगी इसलिए भेदभाव के इस गंदे विचार को त्यागे और बेटियों और बेटों में समानता स्थापित कीजिए आज के युग में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ आदि अभियान चल रहे है और लोग समर्थन भी करते हैं पर कोई समझता नहीं इसलिये हमे और आपको अपनी सोच को बदलना होगा तभी दुनिया बदलेगी। बेटियां जगत जननी अन्नपूर्णा सब कुछ है। इसलिए कहां गया है

“खुशियों का संसार है बेटी, प्रेम का आधार है बेटी,
शीतल सी एक हवा है बेटी, ममता का सम्मान है बेटी,
आंगन की तुलसी है बेटी, पूजा की कलसी है बेटी”,।

बेटी पर निबंध / लेखिका – अंजली कुमारी

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *