पाखंड को विस्तार से जानने से पूर्व हमें पाखंड के पर्यायवाची को जानना होगा, क्योकी अधिकांश लोग पाखंड को धार्मिकता से जोड कर देखते है। जो पूरी तरह गलत है। पाखंड का पर्यायवाची शब्द है – धोखा, आडम्बर, छ्ल, ढकोशला, कपट और फरेब आदि। अर्थात जो मनुष्य ऐसे कार्य करता हो, उसे पाखंडी कहते है।
पाखंड शब्द किसी विशेष धर्म या समूदाय का जिक्र नही करता, बल्कि यह तो समाज मे हो रहे बुराइयों को दर्शाने का जरिया है। और इन बुराईयों को बढावा देने वाले मनुष्य को पाखंडी कहते है। आइये विस्तार से जानें
पाखंड क्या है ?
हर मनुष्य के अंदर दो चरित्र या मन होता है। वह एकांत में कुछ और तो समाज के सम्मुख कुछ और होता है। हालाकि ऐसा वह अपने आंतरिक शक्ति के कारण भी कर सकता है। लेकिन जो मनुष्य बुरा होने के बाद अच्छा होने का दिखावा करता है, तथा अपने बुध्दि से लोग व समाज को गुमराह करता है वह पाखंड करता है।
जो मनुष्य स्वयं के सुख के लिये लोग या समाज को गुमराह करते है उन्हे पाखंडी कहते है।
सूरज नारायण
पाखंड का कारण
लोगो की अनैतिकताओ ने पाखंड को जन्म दिया है। इसका मुख्य कारण अज्ञानता है। जब तक मनुष्य अज्ञानी, अनैतिक, रहेगा व अपने मूल अस्तित्व को नही पहचानेंगा, तब तक वह पाखंड का शिकार होता रहेगा। जब मनुष्य मस्तिष्क को प्रमुखता न देकर किसी अन्य वस्तु को प्रमुखता देता है तो वह अंधविश्वास और पाखंड को बढ़ावा देता हैं।
जिस विधि या कार्य द्वारा जनता का शोषण किया जाता है, उसे पाखंड कहाँ जाता है।
सूरज नारायण
पाखंडी कार्यों के द्वारा ही जनता का शोषण के किया जाता है। पाखंड करना किसी व्यक्ति की चारित्रिक विशेषता है। जो अपने पास अच्छे गुण भौतिकता और सिद्धांतों के होने का दिखावा करता है किंतु उसके पास होता नहीं है। समाज मे अनेकों प्रकार के पाखंडी कार्य किये जा रहे, जिन्हे हम स्वेच्छा से उनके प्रकार बना सकते है। जैसे- धार्मिक पाखंड, सामाजिक पाखंड, आदि।
धार्मिक पाखंड क्या है ?
धार्मिक पाखंड का अर्थ धार्मिक क्षेत्र में अपने धर्म पर सच्ची भक्ति और निष्ठा का दिखावा करते हुए केवल लोगों को दिखाने के लिए झूठ – मूठ का पूजा पाठ करना, तथा उनसे भक्ति व आस्था के नाम पर भारी रकम के साथ-साथ अन्य वस्तुयों की मांग करना, ताकी कोई दैवीय शक्ती उनका कार्य पूरा कर सके, ही धार्मिक पाखंड है।
वह आस्था या भक्ति जो केवल दूसरों को दिखाने के लिये की जाय और जिसमें कर्ता की वास्तविक आस्था व श्रद्धा न हो, बल्की मोहमाया के बंधन से युक्त होकर, अपने सुख के लिये समाज का शोषण करता हो, या उनके आस्था का गलत उपयोग करता हो, ही छ्ल, ढोंगी या पाखंडी कहलाता है।
सूरज नारायण
उदाहरण – पाखंडी लोग बिना किसी आस्था के भक्ति या उपासना का ढोंग करते हैं। हाल ही मे महाकुम्भ के मेले के दौरान, एक बाबा से मिलने आई स्त्री के साथ दुष्कर्म किया गया, जो पाखंड का जीवांत उदाहरण है। ऐसे कई कथा वाचक (सभी धर्मों के) है जो प्रवचन सुनाने के लिए भीड़ इकट्ठा करते हैं तथा भक्ति भाव में तल्लीन भक्तगण ऐसे मंत्रमुग्ध हो जाते हैं कि अंधविश्वास के कारण वो उन्हे ईश्वर का रुप मान लेते है। जिसके कारण कथा वाचक तथा अन्य सहकर्मियों के द्वारा उनके बहू बेटियों पर आती वासना की नजरों को पहचान नहीं पाते और भोगी इसी बात का लाभ उठाकर मनमानी करते हैं।
उदाहरण के तौर पर “अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद द्वारा जारी फर्जी बाबाओं की लिस्ट” देंखे, जिन्होने पाखंडी कार्य किये है, जैसे- आसाराम, संत रामपाल, सच्चिदानंद गीरी आदि विस्तार से जाने
पाखंड के कारण समाज पर पड रहे दुषप्रभाव
- समाज से आस्था या भक्ति का पतन
- समाज मे अधिक बुराइयों की उत्पत्ति
- ईश्वर पर लोगो का विश्वास ना करना।
- अपने संस्कृति / समाज व व्योहार का बहिष्कार करना।
- लोगो मे असमानता
- सामाजिक संतुलन का बिगडना।
नोट- इस लेख मे हमने पाखंड क्या है तथा पाखंड के कारण को जाना, आपको बता दू यह लेख किसी भी प्रकार से किसी विशेष धर्म की बात नही करता, ना ही किसी धर्म की अवहेलना करता है। लेख मे दिये गये कुछ उदाहरण, न्यूज चैनलों के साइटो से एकत्रित की गई है, जो सत्य है, इसलिये इसे स्वीकार करें तथा समाज को सुधारने मे अपनी अहम भूमिका निभाये।
मुझे भक्ति और पाखंड का परिभाषा उदाहरण सहित समझाइए ।
वैसे मे आपकी बातो से सहमत हु पर पूर्ण रूप से नहीं।
नमस्कार!
उम्मिद है आप सकुशल होंगे/होंगी
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