पतिव्रता नारी सावित्री की कथा विवाहित महिलाओ द्वारा सुने जाने वाला सबसे प्राचीन व धार्मिक कथा है। खासकर इस कथा या कहानी को विवाहित महिलाये किसी धार्मिक त्योहार जैसे – करवा चौथ, हरियाली तीज, आदि के दिन सुनती है।
आज हम इस संग्रह मे पतिव्रता नारी सावित्री की कथा सुनेंगे, यह कथा आपअके लिये कितना उपयोगी रहा, कमेंट मे हमे जरुर बताये।
पतिव्रता नारी सावित्री की कथा
सावित्री राजा अश्वपति की कन्या थी उनका पालन पोषण बहुत लाड प्यार में हुआ।वह बड़ी रूपवती गुणवती और सुशील राजकुमारी थी। सावित्री जब बड़ी हुई तो राजा को अपनी प्रिय पुत्री के लिए योग्य वर की चिन्ता होने लगी।राजा ने सावित्री को स्वयं अपना वर ढूंढने की स्वतंत्रता दी।
कुछ दिनों के बाद सावित्री अपने वर ढूंढने के लिए वन की ओरनिकली। थोड़ी दूर जाने के बाद वन में उसने एक सुन्दर नवयुवक को लकड़ी काटते हुए देखा। सावित्री ने उसके पास जाकर लकड़हारे से उसका नाम और पता पूछा। सावित्री ने उस लकड़हारे को मन ही मन अपने पति के रुप में स्वीकार कर लिया।।
वापस आकर सावित्री ने अपने पिता जी को सारी बातें बताई उस समय नारद भी राजा के दरबार में बैठे हुए थे।नारद जैसे ज्ञानी पुरुष ने राजा से कहा कि जिस सत्यवान से सावित्री ने विवाह करने का निश्चय किया है,उसका जीवन केवल एक वर्ष का हो शेष रह गया है।नारद जी ने इस बात को लेकर सावित्री को कई बार समझाया। इतना समझाने के बाद भी सावित्री अपने निश्चय पर अड़ी रही।।
सावित्री के पिता ने भी पुत्री को समझाते हुए कहा,पिरय पुत्री, मैं भी सत्यवान को जानता हूं। उनके माता पिता को उनके शत्रुओं ने राज गद्दी से उतार दिया था।वे अंधे हैं और जंगल में रहते हैं। सत्यवान जंगल की लकड़ियों को काटकर बेचता है और उन्हीं से अपना और माता पिता का गुजारा करता है बेटी तुम्हारा पालन पोषण एक राजसी परिवार में हुआ है। उस निर्धन की झोपड़ी में,भला तुम किस प्रकार रह सकोगी।
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सावित्री ने मुस्कुराते हुए कहा, मैं सब कुछ जानती हूं फिर भी हम अपना निर्णय बदल नहीं सकते हैं। अन्त में नारद जी के कहने पर राजा अश्वपति ने अपने पुत्री की बात मान ली। और सावित्री का विवाह सत्यवान के साथ कर दिया। सावित्री ने पतिव्रता धर्म का पूरा पालन किया।वह अपने पति के साथ वन में सुख पूर्वक रहने लगी और अपने सास ससुर की सेवा भी करने लगी।उसकी सेवा से वे दोनों बहुत खुश थे। और भगवान से प्रार्थना करते कि सावित्री सदा सुहागिन रहें।
अन्त में वह दिन आ ही गया, जिसका भय था आज कल कई दिनों से सावित्री भी सत्यवान के साथ जंगल में जाती थी उस दिन भी जब सत्यवान चला तो सावित्री साथ में चल दी।उसका मन भय से काप रहा था। आंखों में झलक रहें थे।
हमेशा की तरह वन में पहुंच कर सत्यवान एक पेड़ पर चढ़कर लकड़ी काटने लगा। सावित्री पास ही बैठकर उसे ध्यान से देखती रही। लकड़ी काटते काटते अचानक सत्यवान ने अपना सिर पकड़ लिया है और लड़खड़ाते हुए सावित्री के पास आ गया।
इतना तेज सिर दर्द हो रहा है जैसे फट जायेगा इतना कहा और बेहोश होकर गिर गया। सावित्री डर और आशंका से काप उठी। फिर भी अपने आप को थोड़ा समभाला और ईश्वर का स्मरण किया।
अचानक उसके सामने एक सौम्य मूर्ति खड़ी दिखाई दी उसने सावित्री,से कहा,देवी मैं यमराज हूं। तेरे पति के लेने के लिए आया हूं क्योंकि धर्मात्मा लोगों को लेने के लिए मैं स्वयं ही आता हूं। सावित्री ने कहा हे, महाराज मै एक पतिव्रता नारी हूं। सत्यवान के साथ मेरा जन्म जन्म का सम्बन्ध है। मैं भी अपने पति के साथ जाऊंगी। ऐसा कहकर सावित्री उठकर खड़ी हो गई और यमराज के पीछे पीछे चल दी।
यमराज ने कहा सावित्री, तुम मेरे पीछे मत आओ। तुम लौट जाओ। सावित्री ने कहा हे देव, पतिव्रता स्त्री पति के विना कैसे रह सकती है। यमराज सावित्री के पतिव्रत धर्म के आगे झुक गयेऔर कहने लगे, सावित्री मैं तुम्हारे पतिव्रत धर्म से प्रसन्न हूं। तुम अपने पति के प्राणों को छोड़कर कुछ भी मांग लो।
सावित्री ने खुश होकर कहा,हे देव, मेरे सास ससुर का छीना हुआ राज्य वापस मिल जाए। ऐसा ही होगा।ये कहकर यमराज जाने लगें। थोड़ी दूर जाने के बाद यमराज पीछे देखा तो सावित्री आ रही है । यमराज ने पूछा तुम अब भी मेरे पीछे आ रही हो।
सावित्री ने कहा हे देव, मेरे सास ससुर तो अंधे हैं वे राज्य को कैसे सम्भाल लेंगे।तब यमराज ने कहा मैं आशीर्वाद देता हूं तुम्हारे सास ससुर को दिखाईं देने लगेगा। आशीर्वाद देकर यमराज आगे बढ़े ।पलट कर देखा तो,सावित्री अभी भी पीछे पीछे आ रही है। यमराज को गुस्सा आया ,और बोलें तुम ,अब क्यों आ रही हों ।अब मैं तुम्हें बहुत वरदान दे चुका हूं। तुम वापस लौट जाओ।
सावित्री ने कहा हे देव मेरे सास ससुर के बाद इस राज्य को कौन सम्भालेगा। यमराज ने कहा हे देवी मैं वचन देता हूं कि तुम्हारे सौ पुत्र हों और राज्य की देख भाल करें। तब सावित्री ने हंसकर कहा,हे देव आप मेरे पति को ले जा रहे हैं। मैं अपने पति के बिना पुतवती कैसे बन सकतीं हूं
यमराज हक्के बक्के रह गए। सावित्री ने उन्हें निरूततर कर दिया। सावित्री का पतिव्रता धर्म जीत गया। उन्होंने ने विवश होकर सत्यवान को जिवित कर दिया और कहा देवी, मैं तुमसे हार गया हूं तुम जीत गयी हो।जाओ अपने पति को ले जाओ और सांस ससुर की सेवा कार राज्य के सुखों को भोगो। थोड़ी ही देर में सत्यवान अपनी आंखें मलते खड़ा हो गया। सावित्री अपने पति को लेकर खुशी खुशी अपने घर चली गई।
यह कथा यही समाप्त होती है। उम्मिद है सभी भक्तो को यह कथा पसंद आई होगी, कृपया अपनी राय कमेंट मे जरुर बताये।