ज्यादा बोलना सही है या गलत ये ऐसा प्रश्न है जो कुछ ही लोगों के दिमाग़ में ही उठता है. ये प्रश्न तब भी उठ सकता है जब आप को कोई बोल देता है कि आप बहुत ज्यादा बोलते है,
इसलिये ज्यादा बोलना (jyada bolana) इस बात पर भी निर्भर करता है की आप क्या और कहाँ बोल रहे है. अर्थात बोलना माहौल पर भी निर्भर करता है आइये जानते है ज्यादा बोलना सही है या गलत?
क्या आप भी उनमे से एक है जो बिना मतलब के बोलते रहरे है. हर वक्त कुछ न कुछ बडबडाते रहते है अंदर ही अंदर कुछ न कुछ सोचते रहते है अगर आप का जवाब हां है तो यह पोस्ट आप के लिये है. हम इस आर्टिकल मे ज्यादा बोलने वाले के बारे मे बात करेंगे।
ज्यादा बोलने से क्या होता है? – jyada bolne se kya hota hai
आप को यह ध्यान देना होगा की ज्यादा बोलना या देर तक बोलना मायने नहीं रखता है जरूरी है आप क्या बोलते है और उससे भी ज्यादा जरूरी है आप कहा बोलते है हमारे समाज मे ज्यादा बोलने के मुकाबले चुप-चाप इंसान की कीमत होती है
अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप।
ज्यादा बोलने & कम बोलने पर सुविचार
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।
आइये सबसे पहले हम जानते है की ज्यादा बोलने के फायदे फिर इसके नुकसान को भी जानते है।
ज्यादा बोलने के फायदे
ज्यादा बोलने से कई तरह के परिणाम हो सकते हैं, जो निर्भर करते हैं कि आप किस संदर्भ में बोल रहे हैं और आपके बोलने का तरीका कैसा है. यहां कुछ मामूली और सामान्य असर बताए गए हैं.
व्यक्तिगत बातचीत में बेहतर संवाद: ज्यादा बोलना संवाद को सकारात्मक ढंग से प्रभावित कर सकता है. यह आपको अपने विचारों, भावनाओं, और ज्ञान को बेहतर ढंग से साझा करने में मदद कर सकता है और आपके व्यक्तिगत संबंधों को सुधार सकता है.
समुदाय या संगठन में भागीदारी: ज्यादा बोलने से आपको समुदाय में अधिक सक्रियता और भागीदारी मिल सकती है. आपकी आवाजाही से लोग आपके विचारों और विचारधाराओं को समझ सकते हैं और आपके साथ सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं.
अच्छा प्रभाव: ज्यादा बोलने से आप अपने विचारों, विचारधाराओं और विस्तृत ज्ञान के आधार पर लोगों पर अच्छा प्रभाव डाल सकते हैं. यदि आपके पास अच्छी संवेदनशीलता और संबंध निर्माण की क्षमता है तो यह आपके लिये अच्छा साबित हो सकता है।
जीवन बदल देने वाले प्रसिध्द अनमोल सुविचार
कीमत घडी की नहीं होती कीमत तो समय की होती है
ज्यादा बोलने से होने वाले नुकसान
ज्यादा बोलने का अर्थ है कि किसी छोटी बात को बड़ा करके बताना, इसका ये बिल्कुल मतलब नहीं है की आप को किसी भी शब्द को विस्तार से नहीं बताना है, विस्तार से बताने का मतलब की उसके बारे में पुरी जानकारी देना जो उसके लिये जरूरी हो, बल्कि छोटी बात को बड़ा करके बताने का अर्थ है कि वो सारी चीजे बताना जो जरूरी न हो।
ज्यादा बोलने के निम्नलिखित नुकसान हो सकते है: ज्यादा बोलने से होने वाले नुकसान
- जब हम बहुत ज्यादा बोलते हैं, तो हमें व्यर्थ या अयोग्य बातचीत करने की संभावना होती है. यह आपकी व्यक्तित्व को नकारात्मकता और आपके आसपास के लोगों के साथीयों के बीच तनाव का कारण बन सकता है. जिसके परिणाम स्वरुप धीरे-धीरे लोग आपसे दूरिया बनाने लगते है।
- जब हम बहुत ज्यादा बोलते हैं, हम थकान महसूस कर सकते है ऐसे मे हमें विश्राम की आवश्यकता होती है. लंबी और अव्यवस्थित बातचीत आपको थका दे सकती है और आपकी मानसिक और शारीरिक स्थिति पर असर डाल सकती है. इसलिये अधिक बात-चीत भी हानिकारक साबित हो सकती है।
- जब हम अधिक बोलते हैं, तो हमारे सुनने की क्षमता कम हो जाती है. हम अपने आसपास के लोगों के विचारों, अनुभवों और ज्ञान को सुनने की अवस्था से दूर हो जाते हैं, जिसके परिणाम स्वरुप हम बिना विचारे व्यर्थ की बात करते है।
- जब हम ज्यादा बोलते हैं, तो हमारा भाषण लोगो के द्वारा नापसंद किया जा सकता है जिसके परिणाम स्वरुप समूदाय असंगठित हो सकता है। आदि
- ज्यादा बोलना या कीसी बात को बार – बार बोलना बाइपोलर डिसऑर्डर का लक्षण है। ज्यादा बोलने वाले लोग अपनी बात के आगे किसी की बात नहीं सुनते। इसके परिणाम स्वरुप दूसरों को बोलने का मौका नहीं मिलता और इनकी बात – चीत एक तरफा रह जाता है।
बोलने की शैली सीखे
कला या शैली एक ही शब्द है इसका अर्थ है कि हम दूसरों के सामने अपने विचार को प्रस्तुत कैसे करें. जिससे वो हमारी बात समझ भी जाये और अगली बार कोई प्रश्न पुछने में हिचके भी न
बोलने की कला में इस बात को याद रखना होगा की ज्यादा न बोले, जितना काम लायक हो उतना ही बोले हर क्षेत्र में महारथ हासिल करने की कोशिश ना करें आप जिस क्षेत्र में माहिर है उसी की जानकारी देने की रुचि रखे,
आप को यह याद रखना होगा कि आप हर क्षेत्र मे प्रारंगत नहीं है जिस क्षेत्र में आप अपनी राय भर या कल्पना बस दे सकते है. तो ऐसे प्रश्नों के उत्तर देने से बचे, अगर आप इन सब बातों के नजरिये से बात करते है तो उम्मीद है आप अपने बोलने की शैली में परिवर्तन जरूर पायेंगे।
ज्यादा बोलना क्या है?
अगर आपको कोई बोलता है की आप ज्यादा बोलते है तो घबराइये मत क्योंकि “आप ज्यादा बोलते है” ये शब्द वो लोग भी कह सकते जिनको आप कि बात समझ नहीं आ रही होगी, या ये भी हो सकता है आप को वो पसंद ना करते हो।
अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप, अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप। अर्थात जरूरत से ज्यादा बोलना या चुप रहना दोनों ही अच्छा नही होता. हमे इस दोनो व्याहारो मे संतुलित प्रक्रिया अपनानी चाहिये।
अगर आप ज्यादा बोलते है तो आप को खुद पे ध्यान देना होगा. क्या आप को पता है? ज्यादा बोलना और जल्दी – जल्दी बोलना मे अंतर होता है ज्यादा बोलने से मतलब है की आप बेवजह बातो को बडा करके बता रहे है जिन बातो का आपस मे कोइ सम्बंध नही उन बातो को भी आप बता रहे है. ऐसा करने से आप को बचना चाहिये।
कैसे बोलना चाहिये – bolana sikhe
जब बात है सबसे अच्छा बोलने की तो हम धैर्यवान व्यक्तियो की याद आती है. जैसे स्वामी विवेकानंद , चाण्क्य, ये ऐसे लोग है जब भी आप इनके द्वारा कही हुई बातो पर ध्यान देंगे तो आप को मालूम होगा कि ये लोग ज्यादा बोलते तो नही थे परंतु जो भी बोलते थे उस शब्द मे गहराइ छुपी होती थी
अपने शब्दो मे धैर्य बना कर, वाणी को मधुर बना कर, और कम शब्दो मे अपनी बात को खत्म करने की कोशिश करे, जितना काम हो बस उतना ही बोले, अपने वाणी पर पकड रखे।
जल्दी- जल्दी बोलने का अर्थ है कि आप कीसी बात को इतना तेज बोल देते है की सामने वाला सुन ही नही पाता, या फिर कोई बात आप अपने मन मे ही बोल लेते है या बहुत धीरे – धीरे बोलते है, ऐसा करने से बचना चाहिये, और ना हि आप को ज्यादा बोलना चाहिये और ना ही आप को जल्दी-जल्दी बोलना चाहिये।
wow plz hindi me thoda correction kijiye and tx
nice writting